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हिंसा और अहिंसा


हो जाता है। हमारी समझमें सत्याग्रहके सिद्धान्तकी शिक्षा देने और उसका प्रचार करनेके लिये इस देशमें इससे उपयुक्त समय कभी भी उपस्थित नहीं हुआ था। सत्याग्रहसे हमारा अभिप्राय सविनय अवज्ञाका नहीं है बल्कि सचाई और अहिंसा-के भावके प्रचारका है। इसमे किसी तरहके पराजयकी सम्भावना नहीं और यदि इससे किसी प्रकारको क्षति होने-की सम्भावना है तो उसका भोगनेवाला स्वयं कर्ता होगा।