सिकताको उचित प्रशंसा करें। यदि वे उन समग्रशक्ति-
योको जो राष्टके उत्थानके साधन रूपमें दिन प्रति दिन
दृष्टिगोचर हो रही हैं, एक नाथमे नाथ ना चाहते हैं;
यदि वे नये राष्ट्रीय उत्थानमे प्रतिष्ठाका स्थान प्राप्त करना
चाहते हैं, तो उचित है कि समयकी प्रगतिको वे उपेक्षाकी
इष्टिसे न देखें, नई पीढ़ीके आगे बढ़ने में वाधा न उप-
स्थित करें, उनके बढ़ते उत्साहको भङ्ग न करें बल्कि उन्हें
उचित है कि वे इन नवयुवकोंके बढ़ते दलका नेता बन बैठे
और इनके उत्साह को बढ़ावे। उनके प्रत्येक कामोके साथ
सहानुभूति दिखावे, उनके हृदयके ऊफानोंको और भी उठने
दें, और उनका नियन्त्रण करें। इससे दोनोंका लाभ होगा। नव
युवकों को ऐसे लागोंके निरीक्षणकी सहायता मिल जायगी
जो समय और कालका पूर्ण अनुभव प्राप्त करके परिपक्क
वुद्धिके हो गये हैं और उन वृद्धोंको एक ऐसा दल मिल जायगा
जो पूर्ण नियन्त्रणके साथ मातृभूमिके चरणोंपर अपना सर्वख
वारनेको सदा तैयार हैं। पर यदि उनकी परवा नहीं की गई,
यदि उन नवयुवकोंको किसी तरह विदित हो गया कि ये
वयो वृद्ध लोग हमारी आवश्यकताओंकी चर्चा सुननेके लिये
तैयार नहीं हैं, हमारी सहायता करनेके लिये तैयार नहीं है, तो
संभव है कि वे हताश और निराश हो जायं और निराशाका जो
भयङ्कर परिणाम होता है वह किसोसे छिपा नहीं है । निराशा.
के वशीभूत होकर मनुष्य बुरासे बुरा काम करनेके लिये सन्नद्ध
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सत्याग्रह आंदोलन