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सत्याग्रह आन्दोलन


भंग की रंग जम रही है तो किसी में सोलहों परीकी नाच हो रही है ( जआ खेला जा रहा है ) तो कहीं पकवानों की ही फिक्रने व्यस्त कर रखा है । भला ऐसे व्रतोसे आत्मा पवित्र होकर ऊपरको कैसे उठेगी ! उलटे इससे तो और भी अधिक पतन होने की सम्भावना है । यदि उपवास का सञ्चा उपयोग करना है तो उपवास के दिन को केवल सद्विचारों में भी बिताना चाहिये और बुरे तथा कुमार्ग में ले जानेवाले विचारों के दमन की दृढ़ प्रतिज्ञा करनी चाहिये । इसी प्रकार यदि प्रार्थना का सुफल प्राप्त करना है तो वह विदित और भावगम्य होना चाहिये । प्रार्थना करनेवाले को उसी प्रार्थना में रत हो जाचाहिये । शरीर और आत्माको उसीका अवयव बना देना चाहिये । एक तरफ तो अंगुलियों के सहारे माला की मनिया ( दाना ) घुमाते रहना और दूसरी ओर मन की प्रवृत्ति को बहक कर इधर उधर जाने दना, इस प्रकारकी प्रार्थना निरर्थक और बेकार है । इसका फल बुरा ही होता है । इसलिये हमे पूर्ण आशा है कि आत्मत्याग और आत्म समर्पण के आगामी सप्ताह में प्रार्थना और उपवास का व्रत राष्ट्रीय महत्ताका सञ्चा द्योतक होना चाहिये न कि केवल नाम मात्र के लिये, केवल दिखलानें के लिये इसे स्वीकार करना चाहिये ।

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हजारों मुसलमानों का एक दल में प्रार्थना के लिये जाना और सच्चे हृदय से सत्य की विजय के लिये प्रार्थना करना सफलता को