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सत्याग्रहकी सर्वव्यापकता


मतीसे काम करती है तो प्रजाकी हार होगी और यदि प्रजा उचित मार्ग पर है और राजा न्यायसे विमुख हो जाता है तो यह राजाके लिये घातक है। यदि युद्धमें सत्याग्रह अस्त्रसे काम लिया गया तो बनावटी आन्दोलन-अर्थात् जो आन्दोलन सच्चे दिलसे नहीं किया गया है और जिसके चलानेके लिये जबर्दस्ती शक्तिका संचय करना पड़ता है-का एक दमसे नाश हो जायेगा। थोड़ी देरके लिये मान लीजिये कि किसी देशकी प्रजा अपना शासन करने योग्य है अथवा किसी उच्च आदर्श या महत्वपूर्ण सिद्धान्तके लिये वलिदान करनेके लिये भी तैयार नहीं है तो चाहे वह असहयोगको लेकर कितना भी शोर गुल क्यों न मचावे उसकी विजय नही हो सकती। मान लीजिये कि कोई सरकार अच्छी है, उसकी शासन व्यवस्था प्रजाके हित साधनके अनुरूप है, प्रजाके दुःख वास्तविक दुःख नहीं हैं प्रजा भ्रममें है, या उसके दुःख इतने ओछे है कि उस सरकारसे प्राप्त बरकतोके मुकावले उनको कोई गणना नहीं है, ऐसो अवस्थामें कोई भी दल असहयोग व्रत ग्रहण कर सकता है। इसका अन्तिम परिणाम यह होगा कि बिना किसी तरहके रक्तपातके विवादके प्रश्नका पूर्णतया निपटारा हो जायेगा। चाहे इसका किसीको ज्ञान न हो पर महात्मा गांधीने इस बातको बराबर बतलाया है कि सत्याग्रहका अस्त्र राजा और प्रजाके लिये बरा- बर लागू है अर्थात् जिस तरह राजाके विरुद्ध प्रजा इसका प्रयोग कर सकती है उसी प्रकार प्रजाके विरुद्ध राजा इसका प्रयोग कर सकता है। यदि यह बात सच है कि आयलैंण्डकी अशा- न्तिकी औषधिके रूपमें इस शास्त्रके प्रयोग पर विचार किया जा रहा है और यदि इसके प्रयोगकी सम्भावना है तो सत्याग्रहके सर्वव्यापकताका यहीं प्रत्यक्ष प्रमाण मिल जायेगा।