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सत्याग्रह आंदोलन


जाय। इसमें कोई सन्देह नहीं कि सत्याग्रहकी जिस आँचमें इस समय देश तपाया गया है उससे उसकी आत्मा और भी उन्नत हो गई है।


प्रश्न---साधारणतया आपके सत्याग्रह सिद्धान्तकी यही नीति है कि सरकारसे पूर्ण असहयोग किया जाय, वर्ग वर्ग तथा जाति और सम्प्रदायकी परस्पर घृणा वृत्तिको दूर किया जाय और इसके हेतु हर तरहकी यातनायें उठायी और सही जायं । क्या इस तरहकी यातनाओंसे घृणा और विद्वेष बढ़ नहीं सकता?


उत्तर---मेरा तीस वर्षका अनुभव आपके परिणामके एक-दम विपरीत है। मैंने एक भी उदाहरण ऐसा: नहीं पाया जहां सत्याग्रहके व्रतको स्वीकार कर दण्ड दिये जानेके कारण किसी भी व्यक्तिने सरकारके प्रति किसी तरहकी कुचेष्टायें या असद्भाव प्रगट किया हो । दक्षिण अफ्रिकाका उदाहरण ले लीजिये। भारत- वासी लगातार १० वर्षतक सरकारके साथ सत्याग्रहका भीषण युद्ध करते रहे । पर युद्धके समाप्त होनेपर उनके मनमें किसी तरहकी मैल नहीं रह गई थी। दानोंका सम्बन्ध प्रेमपूर्ण था और पूर्ववत् बना रहा। जनरल स्मट्सको भारतीय जनताने सर्व- सम्मतिसे मानपत्र दिया था।


प्रश्न---क्या सत्याग्रहका व्रत लिये बिना और प्रतिज्ञा पत्रपर हस्ताक्षर किये विना भी कोई व्यक्ति सत्याग्रह आन्दोलनमें भाग ले सकता है ?