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निमित्त आत्माको पवित्र करनेके लिये ६ अप्रेलका रविवार
उपवास, प्रार्थना तथा पर्वब्यापी हड़तालके लिये नियत
किया गया। उस दिन अधिकारी वर्ग से उत्तेजित किये जाने
पर जनताने कुछ उपद्रव किया जिसके कारण गोलियां चला
दी गई और सैकड़ों निर्दोषोंके प्राण गये। पञ्जाबमें अमृत-
सरके जालियांवाला बागमें नरवलिकी तैयारी की गई। प्रायः
५०० मारे गये। इसी समय खिलाफतके साथ वादाखिलाफी
की गई। महात्माजीने मुसलमानोंके साथ मैत्री करनेका
अच्छा अवसर पाया। खिलाफत तथा पञ्जाबका प्रश्न लेकर
उठ खड़े हुए। न्याय की प्रार्थना की पर कुछ परिणाम न
निकला। अधिकारियोंके कानमें जूएं तक न रेंगे। लाचार
महात्माजीने असहयोग युद्ध जारी किया। इसके अनुसार युव-
राजका वहिष्कार किया गया। अंग्रेज सरकार इस अपमान
पर उत्तजित हो उठी। मार्च १९२२ में राजविद्रोहका अपराध
लगा कर महात्माजीको जेल भेज दिया। इसीके साथही साथ
यंग इण्डियाका सम्पादन भी महात्माजीके हाथसे प्राय: चार
वर्षों के वाद निकल गया। इस समय महात्माजी यारोदा
मेलमें बैठे शान्तिमय जीवन बिता रहे हैं और चरखा कात
रहे हैं। प्रायः लोग उनसे मिलजुल नहीं सकते।
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