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सत्याग्रह आंदोलन


सत्याग्रह आदोलनका स्थगित कर देना उचित समझा । स्वामी श्रद्धानन्दका मत था कि सामूहिक सविनय अवज्ञा चल ही नहीं सकती। पर मैं इस मतसे सहमत न था। मैं नही कह सकता कि आज भी उनके मनमें परिवर्तन हुआ है या नहीं। * उस समय सविनय अवज्ञाका स्थगित कर देना उतना ही आवश्यक था जितना कानूनको भंग करनेवालेको दण्ड देना आवश्यक है। मैं कमेटीको हड़ताल और सविनय अवज्ञाके बीचके अन्तरको दिखला देना चाहता हूं। हड़ताल केवल जनता और सरकारको दृष्टिको आकर्षित करने के लिये को गई थी और सविनय अवज्ञा उन लोगोके आचरणकी परीक्षा थी जा सत्याग्रहके मन्त्रको स्वीकार करने जा रहे थे । भारतकी जनताकी मानसिक स्थितिको समझनेके लिये इस प्रकार के किसा अस्त्रके प्रयोगकी नितान्त आवश्यकता थी। हड़तालसे मुझे इस बातका पता लगाना था कि सविनय अवज्ञामें मुझे कहातक सफलता सम्भव है।

प्रश्न-यदि एक तरफ हड़ताल हो और साथ ही दूसरी तरफ सत्याग्रहको भी शिक्षा दी जाय तो क्या यह नहीं कहा जा सकता कि यह सब शान्ति भंग करने की प्रेरणायें हैं !

उत्तर-मेरा अनुभव इससे विपरीत है। हजारो पुरुषों,स्त्रियों, लड़के लड़किया,बुड्ढोंको एकत्रित होकर पूर्णशान्तिके साथ


अकाली आन्दोलनमें उत्साहंस भाग लेना ही उनके मत परिव- तनका प्रत्यक्ष प्रमाण है। उन्हें अवश्य विश्वास हो गया है कि सविनय अवज्ञा सामूहिक भी सम्भव है।