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सत्याग्रह आंदोलन


नहीं है। मैंने यह भी देखा कि इस विधानके द्वारा मनुष्य. की नैसर्गिक स्वतन्त्रतापर भीषण वज्रप्रहार होगा और जिस देश, जाति या व्यक्तिको आत्म गौरवका लेशमात्र भी ध्यान है वह इस तरहके कानूनको कभी भी नहीं जारी होने देगी। व्यवस्थापक सभाओंके गैरसरकारी सदस्योंने जिस उत्साहसे इसका विरोध किया था उसे पढ़कर मेरी धारणा ओर भी पुष्ट हो गई। जब मैंने चारों ओरसे इसके प्रतिकूल आन्दोलन उटते देखा तो आत्माभिमानी पुरुषकी हैसियतसे चुपचाप बैठे रहना और इसकी उपेक्षा करना मेरे लिये नितान्त अनुचित और असम्भव था। निदान मैंने इसका पूर्णरूपसे विरोध करना ही स्थिर किया।

प्रश्न-उन कानूनोंका अभिप्राय अराजकता और क्रान्तिको दबानेका है। क्या आप इनको दबाना उचित नही समझते ?

उत्तर-जो अभिप्राय बतलाया गया है नितान्त उचित और प्रशंसनीय है।

प्रश्न-तो आपका विरोध इनके प्रयोगके तरीकेसे है ?

उत्तर--बहुत ठीक।

प्रश्न-कदाचित आपका अभिप्राय यह है कि प्रवन्धकोंके

हाथमें आवश्यकतासे अधिक अधिकार दे दिया गया है ?

उत्तर-कहीं अधिक।

प्रश्न—क्या भारत रक्षा कानूनक अन्तर्गत प्रवन्धकोंके हाथमें इतना ही अधिकार नहीं दे दिया गया था ?