जोरोंका दमन किया गया था। किन्तु सब बातोंके ख्यालसे
इस सम्बन्धमें बिलकुल सन्तोषजनक कार्य नहीं हुआ। इसका
कारण दमन नीति अथवा बारडोलीमें स्वीकृत प्रस्तावोंसे उत्पन्न
शिथिलता बतलायी गयी है। उत्तर भारतमें दोनों ही कारण
बताये जाते हैं। समस्त देशमें जो बड़ा उत्साह फैला
हुआ है उसे देखकर आशा होती है कि रजिस्टरों में नाम
लिखना आरम्भ होनेके कुछ ही दिनों बाद वे नामोंस
भर जायंगे।
स्वयंसेवक-दल
दिसम्बर जन परीके दिनोंमें कांग्रेसके स्वयंसेवकोंने जो
कर्तव्यनिष्ठा और आत्मत्यागकी तत्परता प्रगट को थी उसे
सम्भवतः न जनता ही भूल सकती है और न शासक
ही भूलेगे। उनके संयममें कोई कमी थी तो इसका
सारा दोष उन्हींके मत्थे नहीं मढ़ा जा सकता। स्मरण
रखना चाहिये कि उनके भर्ती होनेके बाद गिरफ्तार
किये जानेतक इतना कम समय मिलता था कि इस बीचमें
वे शिक्षा पा हो न सकते थे। बहुतसे तो अपना नाम भी
रजिस्टर में न चढ़वा पाते कि गिरफ्तार कर लिये जाते थे।
अनुभवसे यह प्रगट होता है कि भविष्यमें स्वयंसेवकोंकी भर्ती
करते समय योग्य मनुष्योंको ही स्वयं सेवक बनानेकी चेष्टा
की जायगी। यह सत्य है कि कुछ स्वयंसेवक नामधारी