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पञ्चायतें

अदालतों के बहिष्कार के साथ पंचायतों की स्थापना भी आवश्यक बतायी गयी थी। यह काम भी उत्साहपूर्वक प्रारम्भ किया गया। देश भरमें अक्तूबर १९२० से जनवरी १९२१ तक बहुसंख्यक पञ्चायतें स्थापित हो गयीं। इनमें से बहुतों ने अच्छा काम किया, कुछ असफल हुईं। दण्ड देने की आवश्यक शक्ति न होने के कारण ये राष्ट्रीय न्यायालय कठिन असुविधाओंमें ही अपना काम कर सकते थे, किन्तु इसी समय उनपर दमन नीति का प्रहार हुआ और कई प्रान्तों में उनकी तथा उनके साथ की विविध सामग्री की बिलकुल सफाई हो गयी। संयुक्त प्रान्त में पुलिस ने पञ्चोंको ढूढ़ ढूढ़ कर पकड़ने का नियमित कार्यक्रम सा बना लिया। बहुत कम ऐसे लोग थे जिन्हें पुलिस के थानों, हवालतों और जेलों की भीतरी कारवाई देखने का मौका न मिला हो। असहयोग जांच कमेटी के सामने दी गई गवाहियों से प्रगट होता है कि पंजाब, बंगाल तथा बिहार में अब भी कई पंचायतें थोड़ा बहुत सन्तोषजनक कार्य कर रही हैं, किन्तु सब बातों के विचार से वर्तमान अदालतों के स्थान में उपयुक्त संस्थाओं की स्थापना करने का प्रयत्न 'कानून और अमन के' प्रचारकों के उत्साह की कृपा से निष्फल हुआ है।

कुछ स्थानों में पंचायतों का प्रयोजन और कार्यक्रम बिलकुल गलत समझ लिया गया था। कानूनके किसी चतुर ज्ञाता ने अंग्रेजी अदालतों से बहुत कुछ मिलती हुई जटिल न्याय प्रणाली