इस प्रकार यह बात सन्देहों और आपत्तियों से रहित प्रमाणित हो चुकी कि भारत को राष्ट्रसभा की समर्थक (जनता की) ऐसी महती शक्ति है जो किसी प्रकार के उत्पीड़न अथवा दमन से दबायी नहीं जा सकती। असहयोगो नेता देश को उचित मार्ग की ओर ले जा रहे हों या अनुचित मार्ग की ओर, वे कार्यक्रम के भिन्न भिन्न मदों की पूर्ति में सफल हुए हों या विफल, पर यह बात तो माननी ही पड़ेगी कि भविष्य में वर्तमान शासन प्रणाली के अनुसार देश का शासन करना नितान्त असम्भव है। हाँ, कुछ समय के लिये अवश्य कठोर दमन नीति के लगातार प्रयोग से शासन किया जा सकता है, किन्तु ऐसा करने से असन्तोष की फाँस लोगों के हृदय मे और भी गहरी पैठती जायगी। जिन्हें देखने की शक्ति प्राप्त है वे हाल में दी गयी प्रधान सचिव और वाइसराय की धमकियों का उत्तर वत्त मान संग्राम को सब कुछ सहकर अपने अधिकारों की प्राप्ति तक जारी रखने के जनता के दृढ़ निश्चय को देखकर समझ सकते हैं।
प्रथम चुनाव होने के ठीक पहले कलकत्ते मे राष्ट्रीय सभा का विशेष अधिवेशन हुआ था। सारे कार्यकर्ताओ को व्यवस्थापक सभाओं का वहिष्कार सफल कराने के प्रयत्न में समूची शक्ति लगा देने का आदेश दिया गया था। राष्ट्रीय सभा के अनुरोध का जो उत्तर दिया गया उसे देखकर