होने की सूचना देनेवाले की आवाज सुनकर वे हजारो की संख्याम असहयोगियों को सभाम आ जटते है जो उनकी पथ-प्रदर्शक नहीं हैं और जिन लोगों के वे भक्त और अनुयायी है उन्हें बिलकुल अकेला छोड़ देते हैं जब तक कि सरकार के अधिक प्रसिद्ध कर्मचारियों विशेषकर पुलिसवालों द्वारा वे 'शान्तिपूर्वक फुसलाये' नहीं जाने।
श्री लायड जाज के हाल के ऐतिहासिक भाषण का-जिसने हमारे नग्मदलवाले भाइयो में इतनी खलबली पैदा कर दी है.-- एव शब्दोक अर्थ पर प्रधान मचिवके सिर हिलाने के प्रभाव के सम्ब- न्धमे दिये गये वाइसराय के भाषण का वर्णन व्यवस्थापक सभाओं में असहयोगियों के जाने के प्रश्न का विचार करते समय किया जायगा। यहाँ पर इतना कह देना ही उचित होगा कि शासकोंक ये भाषण उस मानसिक अवस्थाके द्योतक है जो आशाके विफल होने में उत्पन्न होती हैं और जो क्रोधमयी भाषा मे प्रगट होती है। यदि निर्वाचकों को प्रभावित करनेमे असहयोगी इस प्रकार सर्वथा विफल हुए है जैसा कि कहा जाता है, तो उन्हे यह धमकी देने की क्या आवश्यकता थी कि यदि आप लोग सुधारों का विध्वंस करने का साहस करेंगे तो इसका परिणाम अच्छा न होगा? इतना और कह देना आवश्यक है कि इन बड़ी बड़ी वक्त ताओं के कारण असहयोगी तनिक भी उद्विग्न नहीं हुए हैं।