आत्मसंयम हमें अपने त्रिविधि लक्ष्यकी ओर कई मील आगे
पहुंचा देगा। इस लिये ( मेरी गिरफ्तारी पर ) कोई हड़ताल
न मनाई जाय, कोई जोर शोरके प्रदर्शन न किये जायं, न
जुलूस निकाले जायं ।"
दो ही बातें हो सकता है, या तो लोग वास्तवमें गान्धी- जीको महात्मा समझने थे या वे ऐसा न समझते थे। यदि जनता उन्हें महात्मा न समझती थी तो फिर उस बुलबुलेका अस्तित्व ही कहां था जो फूटता ? यदि लोग उन्हें 'महात्मा ही मानते थे तो ऐसा कोई भी भारतीय नहीं जो तोपर्क सामने खड़े होकर भी ऊपरके अवतरणमें किये गये हृदयग्राही अनु- रोधकी उपेक्षा करता। किन्तु शासकवर्ग दोनों तरहकी बातें करता है। इस प्रकार दिन दिन झठे म्वर्गका निर्माण किया जाता है।
सरकारका एक और समर्थक
श्री रशत्रु क विलियम्स, जो सरकारी नीतिका सम.
र्थन करनेवाले कर्मचारी हैं, अपनी पुस्तक "सन् १९२१-२२
का भारत” में असहयोगके सामान्य परिणामोका वर्णन करते
हुए, अपनी इच्छाके विरुद्ध, देशभक्ति के भावको अस्तित्व
माननेके लिये विवश हुए हैं। हां, उन्होंने उसे उच्च श्रेणीके
लोगों तक ही परिमित कर दिया है और उसे उन रङ्गोंसे रङ्ग
डाला है जो उन्हें सेक्रेटरी-विभाग ( सेक्रेटरियट ) से प्राप्त