७४ मुगल कहानिया दिखाने-लायक कहां रही ? अब तो मरना ही ठीक है। अफसोस ! मैं किसी गरीब किसान की औरत क्यो न हुई ! धीरे-धीरे स्त्रीत्व का तेज उसकी आत्मा में उदय हुआ। गर्व और दृढ़ प्रतिज्ञा के चिह्न उसके नेत्रों में छा गए। वह सांपिन की तरह चपेट खाकर उठ खडी हुई । उसने एक और खत लिखा- 'दुनिया के मालिक ! आपकी बीबी और कनीज होने की वजह से मैं आपके हुक्म को मानकर मरती हूं। इतनी बेइज्जती पाकर एक मलिका का मरना ही मुनासिब भी है। मगर इतने बड़े वादशाह को औरतों को इस कदर नाचीज़ तो न समझना चाहिए कि एक अदना-सी बेवकूफी की इतनी कडी सजा दी जाए। मेरा कुसूर सिर्फ इतना ही था कि मैं वेखवर सो गई थी। खैर, सिर्फ एक बार हुजूर को देखने की ख्वाहिश लेकर मरती हूं। उस पाक परवरदिगार के पास जाकर अर्ज करूंगी कि वह मेरे शौहर को सलामत रक्खे । -~-सलीमा खत को इत्र से सुवासित करके ताजे फूलों के एक गुलदस्ते में इस तरह रख दिया कि जिससे किसीकी उसपर फौरन ही नज़र पड जाय । इसके बाद उसने जवाहरात की पेटी से एक बहुमूल्य अंगूठी निकाली, और कुछ देर तक आंखें गडा- गडाकर उसे देखती रही। फिर उसे चाट गई ! 1 वादशाह शाम की हवाखोरी को नजर-बाग में टहल रहे थे । दो-तीन खोजे घबराए हुए आए, और चिट्ठी पेश करके अर्ज की-हुजूर, गजब हो गया ! सलीमा बीवी ने जहर खा लिया है, और वह मर रही है ! क्षण भर में वादशाह ने खत पढ़ लिया । झपटे हुए सलीना के महल पहुंचे। प्यारी दुलहिन सलीमा जमीन में पड़ी है। आंखें ललाट पर चढ़ गई हैं। रग कोयले के समान हो गया है । बादशाह से न रहा गया। उन्होंने घबराकर कहा- हकीम, हकीम को बुलानो! कई आदमी दौड़े । बादशाह का शब्द सुनकर सलीमा ने उनकी तरफ देखा, और धीमे स्वर मे कहा-जहे-किस्मत ! बादशाह ने नज़दीक वैठकर कहा-सलीमा ! बादशाह की बेगम होकर क्या तुम्हे यही लाज़िम था ?
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