पृष्ठ:मेरी प्रिय कहानियाँ.djvu/५०

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बौद्ध कहानियां धन्य है वह जिसने धर्म को समझ लिया। धन्य है वह जो किसीको हानि नहीं पहुचाता। धन्य है वह जिसने पापो पर विजय प्राप्त की है ! वही महा- पुल्प है-ज्ञानी है, बुद्ध है। बुद्ध इन सिद्धान्तों की प्राप्ति से उदीयमान तेज से दिप रहे थे । वे शाल ओर गम्भीर मुद्रा में बैठे थे। दो व्यक्तियों ने प्राकर उनके चरणों मे सिर रन्य दिया। 'हे मनुष्यो ! तुम्हारा कल्याण हो ! तुम कौन हो?' 'हे प्रभु, मेरा नाम सपुस है और इसका मल्लिका; हन व्यापारी है। यह चावल की रोटी और शहद हमारे पास है ; इसे ग्रहण कर कृतार्थ करे ।' 'हे मजनो ! मैने तुम्हारा भोजन ग्रहण किया। बुद्ध-पद प्राप्त होने पर यह मेरा प्रथम भोजन हुा । है धर्मात्मानो ! तुम तथागत बुद्ध के प्रथम शिष्य बने । तथागत बुद्ध का कथन है-जगत् का कोई अन्याय, अत्याचार और पार स्वार्थ से रहित नहीं। सारे दोषों का मूल स्वार्थी मन के अन्दर है। पापन धरती में है, न आकाश में; न हवा मे, न पानी में; न राल में, न दिन में; वह स्वार्थी मनुष्य के मन में है । ज्ञान तो तभी मिल सकता है जब स्वार्थ की निस्सारता और अस्थिरता का पूर्ण ज्ञान हो जाय। मनुष्य उच्च और आदर्श जीवन तभी प्राप्त कर सकता है जब उसे यह निश्चय हो जाय कि स्वार्थ-त्याग के बिना कोई मनुष्य आत्मिक जीवन के पवित्र सुख को अनुभव नहीं कर सकता। यथार्थ सुख स्वार्थ-परायणता और विषय-भोग में नहीं है, कृत्रिमता और प्राडम्बर को दूर करने में है।' इतना कहकर बुद्ध मौन हो गए। दोनों व्यापारियों ने चरणो में गिरकर कहा- हे प्रभु, हम बुद्ध की शरण हैं, हम बुद्ध के धर्म को ग्रहण करते है। बुद्ध ने नेत्र उठाकर देखा, और दोनों हाथ ऊंचे करके कहा-~-कल्याण ! कल्याण !! मगध में हलचल मच गई थी। सभी की जिह्वा पर एक ही बात थी: शाक्य मुनि पतियों को बहकाकर पत्नियों से अलग करता है। वह वंशों का नाश करता है।