पृष्ठ:मेरी प्रिय कहानियाँ.djvu/३३३

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३२२ कौतुक कहानिया बड़े-बड़े इनाम-इकराम और भेटे प्राप्त की है, और इनाम और भेंटों की ये सब अनोखी चीजें उनके ड्राइंग-रूम में राजी हुई है। बड़ी-बड़ी शरों और चीतलों की खाले, मगर के ढांचे, असाधारण लम्बे पशुओं के सींग, बहुमूल्य कालीन, अलभ्य कारीगरी की चीजे, दुर्लभ चित्र और भारी-भारी मूल्य की रत्नजटित अंगूठिया, पिनें और कलमें । परन्तु इन सब में अधिक आश्चर्यजनक और बहुमूल्य वस्तु एक घडी है। यह घडी उन्हें एक इलाज के सिलगिले में नेपाल जाने पर वहां के दरबार से मिली थी। इसका आकार एक बड़े नींबू के समान है और यह नींबू के ही समान गोल है। उसमें कहीं भी घण्टे या मिनट की सुई नहीं, न अंक ही अंकित हैं। सारी धड़ी कीमती प्लाटिनम की महीन कारीगरी से कटी बूटियों से परिपूर्ण है और उसमें उज्ज्वल असल ब्रेजील के हीरे जड़े है। सिर्फ दो हीरे, जो सबसे बड़े है और जिनमें एक बहुत हलकी नीली भाभा झलकती है, ऐसे मनोमोहक और कीमती हैं कि उन्हींसे एक छोटी-मोटी रियासत खरीद ली जाती है। उनमें जो बड़ा और तेजस्वी हीरा है उसपर उंगली की पोर का एक हलके से स्पर्श का दवाव पड़ते ही घड़ी अत्यन्त-मोहक सुरीली तान में घंटा, मिनट, सैकिंड सब बजा देती है। उस तान की गूंज समाप्त होते-होते ऐसा मालूम देता है मानो अभी-अभी यहां कोई स्व- र्गीय वातावरण छाया रहा हो। दूसरे हीरे को तनिक दवा देने से दिन, तिथि, तारीख-पक्ष, मास, संवत् सब ध्वनित हो जाते हैं। यही नहीं, धड़ो में हजार वर्ष का कैलेण्डर भी निहित है ; हजार वर्ष पहले और आगे के चाहे भी जिस सन् का दिन, मास और तारीख आप मालूम कर सकते हैं। ऐसी ही वह आश्चर्य- जनक बड़ी है, जिसे डाक्टर साहब अपने प्राणों से भी अधिक प्यार करते है । कहते हैं-~-एक बार हुजूर प्रालीजाह महाराज ने पचास हजार रुपाए इस बड़ी का डाक्टर साहब को देना चाहा था, तिमपर डाक्टर साहब ने बड़ो महाराज के चरणों में डालकर कहा था-~अन्नदाता, मेरा तन, मन, धन सब आपका है, फिर घड़ी की क्या औकात है; पर इसे मैं बेच तो सकता ही नहीं ! और महाराज हंसते हुए चले गए थे। यह घड़ी स्वीडन के एक नामी कलाकार से नैपाल के लोक-विख्यात महाराज चन्द्रशमशेर जंगबहादुर ने, जब वे विलायत गए थे, मुंहमांगा दाम देकर खरीदी थी और अपने इकलौते पुत्र के प्राण बचाने पर सन्तुष्ट होकर उन्होंने वह डाक्टर को दे डाली थी। वह घड़ी वास्तव में नेपाल के उत्तराधिकारी के प्राणों के मूल्य की थी। कमरे के बीचों-औच बिल्लौर