पीर नाबालिग कहा-सिगरेट पीजिए और सुनाइए, इसके बाद क्या हुआ ? 'उसके बाद लाठीचार्ज हुआ । कांग्रेस के लीडरों ने कहा-भागना कोई मत, जमकर लेट प्रायो और लाठियां खानो' 'तो आप भी लेट गए ? 'जी नहीं, मैं उन बेवकूफों में नहीं हूं जो बैठे-बैठे पिटते हैं। मेरा काम खत्म हो चुका था; लाठी चली तो मैं वहा से भागा। फिर भी पीठ पर दो पड़ ही गई । यह देखिए निशान, कोहनी भी उसी दिन टूट गई।' यार लोग खिलखिलाकर हंस पड़े । परन्तु मैने दोनों हाथों में उनकी कोहनी दवाकर कहा---खैरियत हुई दोस्त, ज्यादा चोट नहीं लगी! आपने अच्छा किया, भाग श्राए। मटरू ने कहा-अब घोड़े की लात की बात कही। पीर नाबालिग ने सहज शान्त स्वर में कहा-लात की क्या बात कहनी है ! सामने एक तबेला था, मैं झपटकर उसीमें घुस गया ! उसमें एक घोड़ा बंधा था, मैं उसीपर जा गिरा ! उसने भी दो लातें कस दी, वस इतनी ही तो बात है। 'इतनी नहीं यार, खाट वाली बात भी कहो !' 'एक खाट वहां पड़ी थी। मैं बाहर तो निकल ही नहीं सकता था; धुड़- सवार लोगों को कुचल रहे थे और पुलिस वाले लाठी चला रहे थे। उधर घोड़ा नामाकूल लात पर लात मार रहा था। मैंने वह खाट अपने और घोड़े के बीच खड़ी कर ली। अब मारता रहे वह लात।' इतना कहकर पीर नाबालिग बेबस खिलखिलाकर हंस पड़े। यार लोग भी हंस दिए। परन्तु मैं नहीं हंस सका। मेरी प्रांखों में आंसू पा गए । पीर नाबालिग ने दो कशा सिगरेट के खींचकर कहा-कहिए, किया है इतना काम जयप्रकाशनारायण ने ? मेरा इरादा बिल्कुल इस सरलहृदय वीर युवक का मजाक उड़ाने का नहीं रह गया। मैं चुपचाप उसकी ओर देखता रहा । उसने फिर कहा- 'देखिए, क्रान्तिकारियों को क्या मैं नहीं जानता? उनके लिए मैंने क्या- क्या जोखम नहीं उठाए ? बम और पिस्तौल छिपा-छिपाकर कहां से कहां पहुं- चाए ! कितना खतरा था इन कामों में, भला कहिए तो?'
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