1 पीर नाबालिग ३०७ ओर उँडेलते हुए, हर तरह मुझे खुश करने और हंसाने के जोड़-तोड़ में लगे रहते है, तब मैं हरगिज़ अपने को लार्ड बावेल से कम नहीं समझता। और इन दोस्तो की बदौलत एक हफ्ते ही में इस कदर मस्ती और ताजगी दिमाग और शरीर में भर ले जाता हूं, जो सैकड़ों रुपयों की दवाइयां खाने पर भी नहीं मुअस्सर हो सकती। जो लोग नैनीताल, मसुरी, कश्मीर और शिमला जाते हैं, मेरी राय मे वे झख मारते है । मैं उनसे कहूंगा, वै बनारस पाए, चित्रा में पान खाएं, और मेरे बेफिक्रे दोस्तों की सोहबत का मजा उठाएं। हां, यह बात जरूर है, उन्हें लाजिम है कि वे अपना बड़प्पन, बुजुर्गी, मनहूसियत और लियाकत को अपने घर पर ही या तो अपनी बीवी के सुपुर्द कर पाएं या सेफ में बन्द कर पाएं। मेरे दोस्त ऐसे बड़े लोगों के पास नही फटक सकते। इस बार कई महीने बाद बनारस पाया था। तमाम गर्मी दिल्ली के जलते हुए मकानों में बितानी पड़ी। काम का बोझा इतना था कि दिमाग का कचूमर निकल गया। अव बनारस में आकर जो गंगा की निर्मल लहरों के ऊपर शरद् के अमल-धवल हिम-श्वेत बादलों के वोच द्वादशी के चांद को आंखमिचौनी करते देखा तो वबियत हरी हो गई। एक दिन गगा की गोद मे सान्ध्य-गोष्ठी की ठहरी । दोस्तों ने लम्बी छुट्टी की कसर निकालने के लिए दूधिया की जगह लाल- परी का प्रोग्राम जड़ दिया। रात दूध में नहा रही थी, और मेरे बेफिक्रे दोस्त लालपरी के रंग में लाल गुल्लाला हो रहे थे। मैं अलस भाव से उनके बीच चटाई पर पड़ा मन्द-मन्द हिलती हुई किश्ती की थपकियों का आनन्द ले रहा था। इस बार मण्डली में एक नए दोस्त की आमद हुई थी। यह नया अदद ऐसा था कि उसने वरवस मुझे अपनी ओर खींच लिया। नुचके हुए गाल-~ -सफेद रुई के गोले के समान । लम्बी नाक की नोक नीचे झुककर होंठ से सलाह-सी कर रही थी। उसी नोक पर गिलिट फ्रेम का एक भद्दा सा चश्मा रक्खा था। बिखरे हुए रूखे खिचड़ी बाल, प्रागे के तीन दात गायब, पान से बाहर तक रंगे हुए होंठ, बदन पर एक साधारण चैक-डिजाइन की कमीज़, कमर में बहुत ढीला मैला पायजामा, जिसका एक पायचा फटा हुआ । पैरों में बिना ही मोजे के बहुत भारी शू, जिनमें फीते नदारद और धूल-पर्द
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