पृष्ठ:मेरी प्रिय कहानियाँ.djvu/२७९

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राजा साहब की कुतिया "राजा साहब, लोथें बिछ जाएंगी, लोथें ।' 'खून की नहरें बहा दूंगा, नहरें; समझ क्या रखा हे आपने ?' 2 दोनो पुराने रईस अपने-अपने दिल के फफोले फोड़ रहे थे । और हम लोग सिर नीचा किए खानदानी रईसों की खानदानी लड़ाई देख रहे थे। जी हा, रईसों की बात ही निराली है । इसी समय कुवर साहब लपकते हुए चले आए। हल्के नीले रंग का बुश कोट, आंखों पर गहरा काला चश्मा, हाथ मे टेनिस का रैकट, गोरा रंग, धूंधर वाले बाल, होठों पर मुस्कान, इसी साल एम० ए० फाइनल किया था । राजा साहब ने माधोगंज को देखा तो उन्होंने हंसकर उन्हे प्रणाम किया, और कहा- कमाल किया आपने चाचाजी, धूप में तकलीफ की, चलिए मैं 'जिम' को आपके यहां पहुंचाए पाता हूं। राजा साहब ने एकदम गुस्सा करके कहा-~-अयं, यह कैसी हिमाकत अपने खानदान को नहीं देखते, कुत्ता उनके घर पहुंचाने जाओगे ? भाधोगंज के राजा साहब ने जाते-जाते कहा- 'हौसला हो तो आ जाना अदालत में ।' 'लन्दन से बैरिस्टर बुलाऊंगा-मापने समझ क्या रखा है ?' 'तो मुकाविले के लिए वाशिंगटन के वकील तैयार रहेगे।' इसी समय एक खिदमतगार रोता-हांफता सिर के बाल नोचता आ खडा हुआ। उसने कहा---गज़ब हो गया सरकार, जुबेदा उस जंगली जिम के साथ भग गई। 'अयं, भाग गई ?' राजा सार वौजलाकर अपनी तोंद पोटने और हाय-हाय करने लगे। लम्बी-लम्बी सांसें खींचते हुए उन्होंने कहा--- 'मेरी खानदानी इज्जत लुट गई। कम्बख्त जुबेदा की बच्ची ने न अपने खानदान का ख्याल किया न मेरे आली खानदान का। दोनों की लुटिया डुबोई।' बहुत देर तक राजा साहब कलमते रहे। इसके बाद मेरी ओर देखकर कहा- निकल जाओ अभी चले 1 मर्दूद