२२४ राजनीतिक कहानिया के अंडे पक रहे थे। लोग अंट-शंट खा रहे थे ! बहुत लोग शराब पी-पीकर अश्लील गीत गा रहे थे। बहुत से स्त्रियों को देख-देख ठिठोली कर रहे थे। बहुत से झूठे सौदे कर रहे थे! बहुत से जेब काट रहे थे-~-कवाव पक रहे थे, मांस के जलने की चिरांध फैल रही थी, बहुत लोग खड़े-खड़े गन्दे खाद्य खा रहे थे, सड़कों पर गन्दगी और कूड़ा-कर्कट का अम्बार लगा था। गाड़ियों में भीड़, धक्कम- धक्का, गाली-गलौज, झूठ, बेईमानी, दगावाजी, अव्यवस्था, अशौच । महामाया ने नाक-भौं सिकोड़कर कहा--मैं महामारी को भेजूंगी, दिल्ली के ये भेड़िए और सूअर पटापट मरेंगे। ये क्या सभ्यता, व्यवस्था, स्थैर्य, शिष्टा- चार और संयम सीखेंगे ही नहीं ? इतना खोकर भी, इतना भोगकर भी ! क्रोध से महामाया का मुह बिवर्ण हो गया । देवराज ने हाथ जोड़कर कहा-नहीं, नहीं देवि, अभी आप निर्णय न करें, देखिए, इधर क्या हो रहा है ?—देवराज ने एक अोर उंगली उठाई । महा- माया ने देखा--- एक हिम-धवल शय्या पर एक क्षीणकाय कृष्ण वर्ण वृद्ध चुपचाप लेटा था, और शय्या को घेरे कुछ भद्रजन अांखों में आंसू और अनुनय भरे उसकी ओर ताक रहे थे । एक लम्बे कद के श्वेतकेशो छरहरे तरुण ने कहा- 'बापू, हम सब कुछ करेंगे, आप अपने जीवन की रक्षा कीजिए।' वापू ने कहा--भद्र, मेरा जीवन तो मेरे लिए है ही नहीं, जिनके लिए है, वे ही इसे नष्ट भी कर सकते है। परन्तु मैं मानुष-द्वेष सह नहीं सकता। सब भाई हैं, एक भाई दोष करे तो दूसरा क्षमा कर दे, तभी उसके दोष का निवारण हो सकता है। 'ऐसा हम कर रहे हैं बापू !' एक बूढ़े मुसलमान ने आगे आकर कहा । बापू ने मुस्कराकर उसका हाथ प्रेम से पकड़ लिया। फिर कहा--कीजिए मौलाना, कीजिए, और जव श्राप सफल होंगे तो मैं उपवास त्याग दूंगा। मै चाहता हूं विश्वशान्ति, अटूट प्रेम, दृढ़ विश्वास और हार्दिक सहयोग । इसीके लिए मैंने जीवन धारण किया और इसी के लिए मैं जीवन की बलि दूंगा। महामाया ने मृदु हास्य से कहा-यह कौन देवभक्त है, देवराज ? 'गांधी है, प्रसन्नमयी ! ये मानवता की रक्षा करने के लिए अपने प्राणों की पाहुति दे रहे है. और ये इनके साथी जवाहर, प्रसाद. पाजाद. सरदार. राजाजी
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