लम्बग्रीव २२३ उमा मूछित होकर रत्न-सिहासन से नीचे गिर गई। रौद्रगण विक्षिप्त हो दिल्ली पर दौड़ पड़े। श्ररर-धम परर-धम धम-धम अग्नि-स्फुलिंग, लोहवर्षण, मृत्यु, लूट, अमर्ष, पाप और ताप का सन्पूर्ण विस्फोट हो गया । लाशें गली-कूचों मे सडने लगी। चांदनीचौक श्मशान हो गया। दुर्गन्ध, अराजकता, अधेर और पाप के सब रूप प्रकट हुए। सड़कर फूली हुई लाशों पर मक्खियां भिनभिनाने लगीं। कुत्ते सियार, गृद्ध, लालकिले के चारों ओर घूमने लगे। यमराज भैसे पर सवार होकर मृत्यु के आन्बेट का लेना- जोखा रखने आ पहुंचे। महामाया ने कालचक्र वेग से घुमाया, देव-दानव सब आकुल, भीत और प्रातंकित हो गए। देवराज सब देवों के परामर्श से सतीश्वरी महामाया के मणिमहल की ड्योढ़ियो पर पहुंचे। और मस्तक झुकाकर बोले-देवि, देवाधिदेव धूर्जटि एक अधम तस्कर के दोष से मर्त्यलोक के लक्ष-लक्ष मानवों का विवंस कर रहे है ! अव आप ही सहायता कीजिए देवि, आप ही की यह सृष्टि है; आप ही यदि इसे विध्वंस करेंगी तो कैसे होगा, कृपा कर कालचक्र को रोकिए, देवि महामाया । महामाया ने हंसकर कहा-एक व्यक्ति के दोष से नहीं देवराज ! सभी का दोष है। उन्होंने अपना जीवन अपने ही में केन्द्रित कर लिया है, वे प्रात्म-पुजारी, रूढि के दास और वासना के पुजारी हो गए है। कर्तव्य-पय को उन्होंने त्याग दिया है । वे मानव-कुल-कलंक हैं, मरें वे सब, देवाधिदेव की आज्ञा से मैं नवीन सृष्टि-रचना करूंगी। इन्द्र ने नतजानु होकर कहा-प्रसन्नमयी, ऐसा नहीं है। लोक गतानुगतिक है, जन-जीवन के रथ-चक्र को घुमाकर कर्तव्य के पथ पर लाने का भगीरथ प्रयत्न कुछ जन कर रहे हैं । आप काल-चक्र को रोकिए, देवि ! महामाया ने झांककर चांदनीचौक की ओर देखाान्दी और अवाछ- नीय भीड़ भरी थी। भद्र-अभद्र सब जन भीड़ में आ-जा रहे थे। सड़को पर खोचे वालों, कचालू वालों और अंडे वालों का जमघट था । खुले मैदान में मुर्गी
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