२२० राजनीतिक कहानिया 'देखो, देखो उसकी स्पर्धा ?' उन्होंने उंगली से संकेत कर उधर कुछ दिखाया। उमा ने भयभीत होकर देखा-चन्द्रकला उसकी टोपी में संलग्न थी। फिर उन्होंने सदाशिव की धूमिल जटाओ को देखा जो चन्द्रकला के प्रभाव से धूमिल और श्रीहीन हो रही थीं। उमा भय और क्षोभ से जड़ हो, उस अंधेरे रेगिस्तान के मार्गहीन मार्ग मे दौडते ऊंट की, और उसके लम्बग्रीव आरोही की भोर देखने लगीं। कैलाशी की भृकुटी कुंचित होती जा रही थी, प्रोष्ठ फड़क रहे थे, कैलाशी कहीं तृतीय नेत्र न खोल दें, इसीसे भयभीत हो उमा ने कहा-क्या उसने चन्द्रकला को चुरा लिया है ? 'देखो तो तस्कर को ?' कैलाशी ने फिर हिमधवल उंगली उठाई। किन्तु मर्त्यलोक में किसीको भी इस देवकोप का पता न था। लाहौर की अनारकली पैरिस के सौदर्य और मोहक विलास से स्पर्धा-सी करती हुई दीख रही थी। सड़कें फैशनेबल ग्राहक, ग्राहिकाओं से पटी पड़ी थीं और दुकानें विदेशी फैशन की सामग्रियों से ! जीवन की कठिनाइयों की यहां परवाह न थी। गेहू, उर्द और चना खा-खाकर, पंचनद की उर्वरा भूमि में उत्पन्न दूध, घी और रस की मुंहछूट खुराक खा-खाकर कद्दावर और स्वस्थ माता-पिताओं ने जो युवक- युवतियो की, आज के युग की, चपल जोड़ियां उत्पन्न की थीं, वह पच्छिमी हवा के झोंकों में झूम-झूमकर अपने विलास और यौवन का उन्मुक्त प्रदर्शन करती घूम रही थीं। धरती और पासमान पर वे अपने यौवन और विलास को छोड- कर दूसरी किसी वस्तु को देख ही न पा रही थीं। चरित्र और जीवन के साथ सश्लिष्ट कुछ गम्भीर दायित्व और भारी त्यागमय भावनाएं भी हैं, इनसे वे बिल्कुल वेखबर थीं। और उनके पिता-पितृव्य मोटे और बेडौल पेट पर, जो बहुधा बेतुले गेहूं और चना खाने और यथावत् परिश्रम न करने से हो जाता है, कीमती विलायती सिल्क का अंग्रेजी कट सूट का खोल चढ़ाए, सिर पर बत्तीस गज़ का एक थान लापरवाही से लपेटे, चोरी, चोरबाजारी, हरामखोरी और पापा- पथी से गट्ठर के गट्ठर अंग्नेजों के दिए कागजी रुपयों को जेबों में भरे फिरते थे, जिनका उपभोग करने में ग्न युवक-युवतियों को कोई रोक-टोक नहीं थी। .
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