२१८ राजनीतिक कहानिया हिमकूट हिल उठा, कैलाश चल-विचलित हो गया, देव-दानव, नाग, दैत्य, जीव, अज भय-विस्फारित नेत्रों से एक-दूसरे को देखने लगे । स्वर्ग-लोक में डमरू- ध्वनि पहुंची । मर्त्य-लोक में डमरू-ध्वनि पहुंची । पाताल-लोक में डमरू-ध्वनि पहुंची । अरे ! हुआ क्या ? कैलाशी श्राज' कहीं असमय में ही रौद्र भाव तो नहीं विस्तार कर रहे है ? शृङ्गी, भृङ्गी ने भूमि पर गिरकर प्रणतिपात किया, उभा रत्नपीठ त्याग अस्त-व्यस्त पांव-प्यादे ही उठ धाई, नन्दी वारम्बार कुकुन्द हिलाने और हुंकार भरने लगे । परन्तु डमरू वजता ही गया- डम-डम-डम-डम डमर-डमर-डम डमर-डमर डमर-डमर डम-डमर-डमर-डम डमर-डमर- वेग से, अति वेग से, अत्यन्त वेग से। उसमें से अग्नि-स्फुलिग निकलने लगे, वायुदेव कांपने लगे । भूलोक में आंधी, उल्कापात, जल-प्रलय, भूकम्प होने लगे। जड़, जङ्गम त्राहि माम्, प्राहि माम् चिल्लाने लगे !! उमा ने भय, भक्ति, स्नेह-पूरित मन्दस्मित वाणी से कहा--देव ! यह क्या ! आपके रक्षित लोक, परलोक, नक्षत्र-मण्डल सब ध्वंस हो जाएंगे ! प्रभो! डमरू-नाद बन्द कीजिए ! सब ध्वंस हो जाएंगे ! 'सो हो जाएं ।' शिव ने त्रिशूल ऊंचा करके भीषण वेग से डमरू-नाद करते हुए कहा। 'जय देव ! जय-जय देव ! जय देवाधिदेव ! जय देव-देव !..." शृङ्गी- भृङ्गी, नन्दी, शिलिमुख, सूचीमुख, भुचुण्डी, शूर्पकर्ण, असिपत्र, वैताल, हिन्ताल, गोशृङ्ग, वज्रपद्म, लोहिताभ आदि शत-सहस्र रुद्र-गण आ जुटे। किसीकी कमर में ताजा चूती हुई हाथी की खाल बंधी हुई। कोई व्याघ्रचर्म स्कन्ध पर लपेटे था। कोई नंग-धडंग, कोई कबन्ध, कोई प्रलम्ब, कोई निरवलम्ब, कोई विकटदन्त, कोई कृतान्त । कोई वीणा, मृदङ्ग, मुरज लिए; कोई शूल-शक्ति वर्मशरपुंख लिए दिग्दिगन्त से आ जुटे । सबने झांककर देखा-~-
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