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लात की आग
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स्थापना नहीं हुई थी। परन्तु मुसलमानों के अाक्रमण अवश्य होते रहते थे। हिन्दुओं के तीन प्रमुख राज्यो में साम्भर के चौहानों का एक राज्य भी था, जिसके प्रतापी राजा अर्णोराज थे । अर्णोराज ने अजमेर के निकट मुस्लिम आक्रमणकारियों से भारी लोहा लिया था। इससे उनका यश दिग्-दिगन्त में फैल गया था। यह चौहान साम्झरपति अर्णोराज, गुर्जरमहाराज कुमारपाल के बहनोई थे ! कुमारपाल की बहन देवलदेवी शाकम्भरीनाथ अर्णोराज को व्याही थी।

उन दिनों गुजरात और राजपूताने के राजपूतों में एक रिवाज ऐसा था जो अति साधारण होने पर भी महत्त्व रखता था। गुजरात के राजपूत नंगा सिर रहने में कोई हानि नहीं समझते थे। वे घर मे प्रायः नंगे सिर रहते थे । परन्तु राजपूताने के राजपूत नंगे सिर रहना असभ्यता समझते थे । वे सदैव पाग सिर पर रखते थे। और यदि कोई नंगा सिर उनके सम्मुख पाए तो उसे अपने लिए अपमानजनक समझते थे। एक बार अर्णोराज और देवलदेवी दोनों राजा-रानी चित्रसारी पर चौसर खेल रहे थे। राजा ने अवसर पाकर रानी की गोटी मार कर यह कहा-यह मारा नंगे सिर वाला! इसपर देवलदेवी ने समझा कि उसके भाई गुर्जरेश्वर पर व्यंग्य किया गया है। उसने ताना मारते हुए कहा- नगे सिर वाले को मारने वाले के धड़ पर सिर नहीं रहेगा । यह सुनते ही अर्णो- राज क्रोध से सुलग उठे। उन्होंने रानी को लात मारकर कहा-जा, जा, यह मेरी लात ही उस नंगे सिर पर है।

देवलदेवी भी बड़े बाप की बेटी थी। उसने क्रुद्ध होकर उत्तर दिया- तुम्हारी यह लाल लेकर मैं पाटन जा रही हूं। वहां से इसके मूल्य का लोहा मैं भेजूगी।

राजा ने भी तिनककर कहा-~-जा, जा, अभी जा। पर इस लात का मूल्य मैं लोहा नहीं, सोना लूंगा । जाकर देख, तेरे पाटन में कितना सोना है । रानी बोली-~~-सोना बहुत है, पर वह राजपूतों के लिए नहीं है, बनियो के लिए है। तुम राजपूत हो, तुम्हें लोहा ही मिलेगा। पर गुजरात का लोहा खायोगे तब देखूगी भेल भी सकोगे या नहीं ! और भी बहुत विग्रह-प्रलाप हुआ। और अर्णोराज ने तत्क्षण पालकी मंगाकर रानी को गुजरात रवाना कर दिया ।

कुमारपाल के सामने देवल ने खूब रो-रोकर अपने अपमान की बात कही । उसने कहा-भाई. यह लात मुझे नहीं मारी गई है गुर्जरेश्वर के सिर पर