पृष्ठ:मेरी प्रिय कहानियाँ.djvu/१०४

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

भाट का वचन नुल बैठे। जयदेव ने आगे पाकर डोले का मुजरा किया और कहा-रानी, अव लाज-शर्म का मौका नहीं है। डोले से वाहर यानो और सांडनी पर चढ़कर मेदपाट की राह पर दौड़ जायो। यह सांडनी साठ योजन धावा करती है। मेरा बेटा तुम्हारी रक्षा मे है। और मैं अपने भाई-बन्दों के साथ गुर्जरेश्वर से लोहा लूगा। उसने अपनी तलवार सूत ली। जयदेव ने ललकार लगाई-भाइयो, अब अनीका वक्त है, दुनिया देखें कि भाट का वचन बड़ा है या राजा का ! भाटों ने हुकार भरी-भाट का वचन, भाट का वचन ! 'तो भाइयो, सब कोई सिर से कफन वांध लो।' सब भाटों ने सिर से कफन बांध लिया। और जिसके हाथ जो पड़ा, लेकर मरने-मारने को तैयार हो वैठा । सबके आगे नंगी तलवार दोनों हाथों में लिए जयदेव भाट था । गुर्जर-सैन्य ने भाटों को देखते ही देखते घेर लिया। कहां अथाह समुद्र के समान गुर्जर सैन्य, कहां बूद के बराबर भाट ! चारों ओर तलवारें छा गई। कटाकटी चली ही थी कि इसी समय सीसोदिनी रानी दोनों दलों के बीच आ खड़ी हुई । उसने एक हाथ ऊंचा करके सतेज स्वर में कहा--क्षण भर ठहरो, यह मै एकलिङ्ग के शरण चली और रानी के हाथ की कटारी मूठ तक रानी के कलेजे में गई। लाल रक्त ने उसकी सुहाग-चिह्नों से भरी चूनरी को रग दिया। उसका निर्जीव शरीर भूमि पर झुक गया। जयदेव ने उन्मत्त की भांति दोनों हाथों की तलवार घुमाते हुए कहा- है, रंग है, राजपूतनी का रंग है, पा राजा, अब भाट का भी रंग देख ! किन्तु कुमारपाल जड़वत् स्तम्भित खड़ा का खड़ा रह गया । गुर्जर वीरों की तलवारें उठी की उठी रह गई। राजा घोड़े से उतर पड़ा और विषादपूर्ण दृष्टि से जयदेव की ओर उसने देखा। भाट ने कहा- अब सीसोदिनी रानी पर मेरा ही अधिकार है, उसके साथ अव भी मैं वचनबद्ध हूं। महाराज को इसमें अापत्ति हो तो मेरी यह तलवार हाजिर है। किन्तु राजा ने जवाब नहीं दिया। वह नीची गर्दन किए कुछ देर खड़ा रहा । फिर उसने कहा-जयदेव, अब मुझे क्या करने को कहता है ? रग