(१९०६-०८-१३८) में वर्णित रामचरित्र रामायण भी उक्त भूपति-कृत ही बताई गई है। उसमे संवत् आदि कुछ नहीं है और न वह इन भूपति की बनाई हुई ही प्रतीत होती है। उपर्युक्त कारणों से भूपति का कविता-काल संवत् १७४४ के लगभग ही माना गया है।
(२) सन् १९०३ और १९०४ की रिपोर्टों मे रसदीप काव्य के कवींद्र और राजा गुरुदत्तसिंह अलग-अलग रचयिता माने गए हैं, परंतु यथार्थ में कवींद्र ने उक्त ग्रंथ संवत् १७९९ में रचा था और अमेठी के राजा गुरुदत्तसिंह (उप० भूपति) को समर्पित किया था, जो कि कवींद्र कवि के आश्रयदाता थे। वे रसदीप-काव्य के रचयिता नहीं थे। कवींद्र कवि का उपनाम प्रतीत होता है।
(३) सन् १९०० में आदित्य कथा बड़ी का रचयिता गौरी कवि माना गया है; परंतु गौरी, भाऊ कवि की मा का नाम था। ग्रंथकार ने स्वयं अपने ग्रंथ में लिखा है-
अगरवाल यह कियो बखाण।
गौरी जननी तिहु वणगिरि थान।।
गर्ग हो गोत मलूकौ पूत।
भावु कवि जन भगत सजूत॥
इससे विदित होता है कि इस ग्रंथ के रचयिता गर्ग गोत्री, अग्रवाल वैश्य, भाऊ कवि त्रिभुवन गिरि निवासी थे; उनकी मा का नाम गौरी और पिता का नाम मलूका था।
(४) सन् १९०६-०८ की रिपोर्टों में 'अनवर-चद्रिका' अनवरखाँ-