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मेरी आत्मकहानी
 

रचयिताओं के नाम का पता लगा जिनमें ७२ का समय इस प्रकार है- १६वीं शताब्दी के १, १७वीं शताब्दी के १५, १८वीं शताब्दी के १८, और १९वीं शताब्दी के ३८ । सन् १९०३ और १९०५ दोनों वर्षों का विवरण एक साथ लेने से यह ज्ञात होता है कि महाराज काशिराज के पुस्तकालय में २९८ पुस्तकों की ३६८ प्रतियां हैं। इनमें से २६७ ग्रंथों के १७५ रचयिताओं का पता चला, जिनके समय इस प्रकार हैं- १२वीं शताब्दी का १, १४वीं शताब्दी का १, १६वीं शताब्दी के ८, १७वीं शताब्दी के ३०, १८वीं शताब्दी के ५० और १९वीं शताब्दी के ५७। १९वीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में साहित्यिक कार्यों के ४ क्षेत्र थे- बनारस, बुदेलखंड, बघेलखंड और अवध। इन दो वर्षों में जो कार्य हुआ उसमें निम्नलिखित कवियों का विशेष रूप से विवरण दिया गया है-

अग्रनारायण, आनंद, भिखारीदास, ब्रह्मदत्त, ब्रजलाल, धनीराम, दीनदयाल गिरि, गजराज, गणेश, गोकुलनाथ, गोपीनाथ, जानकीप्रसाद, काष्ठजिह्वास्वामी, लाल, लालमुकुंद, मणिदेव मनियारसिंह, रघुनाथ बंदीजन, रामसहाय, साहवदीन, सरदार, सुदरदास और ठाकुर। यह रिपोर्ट सन् १९०७ में प्रकाशित हुई।

सन् १९०५ में खोज का काम बुंदेलखंड में हुआ। इस वर्ष में ९८ पुस्तको की नोटिसें रिपोर्ट में सम्मिलित की गई। इनमें से ९७ ग्रंथों के ७७ रचयिताओं का पता लगा जिनका समय इस प्रकार है- १६वीं शताब्दी में ५, १०वीं शताब्दी में १२, १८वीं शताब्दी में ३४ और १९वीं शताब्दी में २१। पाँच ग्रंथकारों के समय का पता