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मेरी आत्मकहानी
 

अपने बड़े से बड़े मित्र की भी उपेक्षा करनी पड़े तो मैं सदा उसके लिये प्रस्तुत रहता हूँ। मैंने सव व्यवस्था प्रबंध समिति के समुख उपस्थित की। वहां से निश्चय हुआ कि यह रकम एक सप्ताह के अंदर वसूल कर ली जाय । भविष्य में ऐसी अन्यवस्था से बचने के लिये निम्नलिखित सिद्धांत उसी अधिवेशन में स्थिर किए गए-

(७) निश्चय हुआ कि बैंक से रुपया मंगाने के लिये चेक पर प्रधान मंत्री और अर्थ-मंत्री के संयुक्त हस्ताक्षर हुआ करें।

"(८) निश्चय हुआ कि जो रुपया सभा में आवे वह सब सीधे बैंक मे भेज दिया जाय। उसमें से कुत्र व्यय न किया जाय । व्यय के लिये जितने धन की आवश्यकता हो उसना चेक द्वारा बैंक से मंगाया जाय।

"(९) निश्चय हुआ कि बंधे हुए मासिक वेवन तथा साधारण फुटकर व्यय को छोड़कर और कोई रकम प्रबंध-समिति की स्वीकृति के बिना नही जाय और न उक्त समिति की स्वीकृति के बिना किसी प्रकार के व्यय का कार्य ही किया जाय। साधारण फुटकर व्यय के लिये अमानव को मौवि सहायक मंत्री के पास ५०) रक्षा करे।"

एक और घटना का हाल संक्षेप कहता हूँ। बाबू जगन्नाथदास रत्नाकर' ने कई हजार रुपया अपने पास से व्यय करके सूरसागर की अनेक प्राचीन इस्वलिखित प्रतियां इकट्ठी की थी और अपना सिद्धात स्थिर करके उसके सम्पादन-कार्य को प्रारम किया था। पर 'उनका देहांत हो जाने के कारण वे उस काम को पूरा न कर सके।