“If you think that there is a defalcation in the accounts of the Kala Bhavan please do bring & deflnite charge and those connected should be brought to book, otherwise it will not be possible for me to continue any longer in such an atmosphere” मैं इस संबंध में यहाँ कुछ न कहकर उन लोगो को जो अधिक जानने के इच्छुक हो सभा का हिसाब निरीक्षण करने के लिये कहूंगा।
इस प्रकार झगड़ा बढ़ते देखकर प्रबंध समिति ने पंडित रामनारायण मिश्र, रायसाहब ठाकुर शिवकुमारसिंह, तथा रायबहादुर पंडया वैजनाथ से प्रार्थना की कि व लोग दोनों पक्षो की बाते सुनकर और सब कागज-पत्र देखकर शांति का मार्ग निकाले। इन महाशयो ने २१-७-३६ को सभा को लिखा―“प्रबंधकारिणी समिति के आज्ञानुसार हम लोगों ने कला-भवन-सबंधी पत्र व्यवहार पढ़ा और सभापति जी और अध्यक्ष जी (कला-भवन) का वक्तव्य सुना। हमे बडा हर्ष है कि दोनों सज्जना में समझौता हो गया और भविष्य मे दोनो मिलकर नियमादि बना लेगे।”
पर यह हर्ष और रायसाहब का त्याग क्षणिक रहा क्योकि दो दिन पीछे २३ जुलाई १९३६ को राय कृष्णदास के वकील बाबू ठाकुरदास ने सभा को यह नोटिस दी।
“अपने मुवक्किल राय कृष्णदास के आदेशानुसार आपको सूचित करता हूँ कि भारत-कला-परिषद् ने अपनी संपूर्ण संपत्ति