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मेरी आत्मकहानी
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"यह घात अनेक वार कही जा चुकी है कि कलाभवन की सूची अमी तक तैयार नहीं हुई। किसी विशाल संग्रह की सूची बनाना साधारण काम नहीं है। अब तक जो काम इस विषय में किया गया है यह इतने समय के लिये यथेष्ट है। डाक्टर मोतीचंद ने, जिनके ऊपर इस काम का भार है, मुझसे कहा है कि उन्होंने सूची का कार्य केवल कलाभवन के स्नेहवश किया है। इससे उनका और कोई लाम नहीं। इसलिये वे इस बात को स्पष्ट कर देना चाहते हैं कि वे कलाभवन की सूची को किसी निर्दिष्ट समय में बनाने के लिये बाध्य नहीं हैं। यदि सभा का व्यवहार शिष्ट रहा तो न्यो न्यो उन्हे फुर्सत होगो वे इस काम को पूरा कर सकेंगे, अन्यथा नहीं ।"

इस पत्र से यह स्पष्ट है कि समा में कलाभवन आने के बाद चक यही परिस्थिति थी। इसी अवस्था में कलाभवन में तीन बार चोरी हुई। बड़े बड़े अनुमान लगाए गए, पर चोरी का पता न चला और सूची के अभाव में यह निश्चयपूर्वक नहीं कहा जा सका कि कोन कौन वस्तु चोरी की गई। केवल अनुमान से एक सूची बनाकर पुलिस में दी गई। चोरी का पूरा पूरा पता न लगा। हाँ, एक बात अवश्य हुई। अनेक प्रकार के अपवाद चारो ओर फैल गए और मिन्न-भिन्न व्यक्तियो पर दोषारोपण किया गया। इन अपवादो स्था दोपारोपा में कोई प्रामाणिक बात न होने से उनका उल्लेख करना व्यर्थ है । पर इन दुर्घटनाओ से मेरी आत्मा को बड़ा कष्ट पहुंचा। यह सब होते हुए भी कलाभवन का कोई संतोपजनक प्रबंध न हो सका। राय कृष्णदास यह चाहते थे कि कलाभवन की एक समिति