अभिरुचि हुई। इस कृत्य में एक दिन अचानक मिस्टर सी० आर० दास की आत्मा आई । उसने मुझे स्वदेशी का पक्ष लेने और अपना स्वास्थ्य सुधारने के लिये किसी पहाड़ पर जाने का उपदेश दिया। उस दिन से स्वदेशी का पक्ष तो मैं यथासाध्य समर्थन करने लगा, पर स्वास्थ्य की चिता न की, जिसका फल मुझे आज तक भोगना पड़ रहा है। आगे चलकर मुझे यह अनुभव हुआ कि इस कृत्य में बहुव कुछ धोखा हो जाता है। महत्ती आत्माएँ प्राय. पृथ्वी पर नही आती। नीच आत्माएं, जिन्होंने इस जन्म मे कुकृत्य किये रहते हैं, गयः भटकती फिरती हैं और आकर दुःख देती हैं। मुक्ते प्रेतलीला का अनुभव एक वेर अपने घर में ही हुआ था। मेरी एक भौजाई को उसके पूर्वजों की एक स्त्री ने आ पकड़ा था। उसने भ्रूणहत्या की थी। अतएव उसकी आत्मा को शाति नहीं मिली थी। वह मटकती फिरती थी और जिस संबंधी ने उसे कुमार्ग में लगाया था उसकी संवति से बदला चुकाना चाहती थी। उसका जब भ्रावेश होता तो वह अपना पूर्व इतिहास सुनाती । मेरा लड़का नंदलाल उस समय बहुत छोटा था। वह खेलते-खेलते अपनी चाची के पास चला जाता सो मेरी माता उसे घट खींच लेती। तब वह प्रेत आत्मा कह उठती-मुझे इन वषों से देष नहीं है। ये मेरे प्यारे हैं। मुझे वो इस लड़की से बदला लेना है। मैं इसे न छोडृंगी। अंत में एक मारवाड़ी प्रामण की कृपा से वह बाधा दूर हुई। कई वर्ष पीछे फिर इसका आक्रमण हुआ और उसी में उसकी मृत्यु हुई। इन सब बातों को सोचकर मैंने इस कृत्य को छोड़ दिया। एक और घटना का स्मरण
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मेरी आत्मकहानी