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मेरी आत्मकहानी
 

परीक्षा के बाद प्रायः विद्यार्थी मुझसे मिलने आते। कोई कहता मैं तो गा या कविता कर सकता हूँ, और कुछ नहीं जानता। ऐसे विद्यार्थियो से भी मुझे काम पडा है जो ऊपर से तो मुझ पर बड़ी श्रद्धाभक्ति दिखाते पर भीतर से उनका उद्देश्य स्वार्थसाधन-मात्र रहता। एक विद्यार्थी का मुझे स्मरण पाता है जो मौखिक परीक्षा देकर बाहर ठहरा रहा। मेरे कार्य समाप्त होने पर डेरे पर चलने के समय वह मेरे साथ हो लिया और कहने लगा कि मुझे आपसे कुछ निवेदन करना है, आज्ञा हो तो कहूँ। उसने कहा कि मैं आपका जीवनचरित लिखना चाहता हूँ। यदि आप सहायता करें तो छुट्टियो मे आपके पास काशी आऊँ। मैंने उससे कहा कि मेरे पास जीवनचरित की कोई सामग्री नहीं है जो मैं तुम्हें दिखा या बता सकूँ। मैंने उसकी और परीक्षा करनी चाही। कई वर्षों बाद वह मुझसे काशी में मिला और मेरी जीवनी के नोट्स माँगने लगा। मैंने उसे नोट्स दे दिए। कुछ दिनो के पीछे उसने उन्हें लौटा दिया, पर आज तक वह जीवनी देखने मे न आई। वास्तव में बात यह थी कि वह मेरी जीवनी नहीं लिखना चाहता था, उद्देश्य केवल यही था कि मैं अन्य कामो मे उसकी सहायता करता रहूँ। यह मैंने किया भी। पर उसके कथनानुसार अस्ताचल में गए हुए सूर्य की कोई पूजा नहीं करता। अतएव अब मुझसे किसी कार्य के निकलने की आशा उसने छोड दी और उसके दर्शन भी दुर्लभ हो गए। एक और विद्यार्थी की करनी मुझे स्मरण आ रही है। वह हिंदी और अँगरेजी मे एम० ए० पास तथा मेरे एक अत्यंत प्राचीन मित्र के आश्रय में उनके यहाँ रहता था। जय