लुढ़का करता। डाक्टर ओहदेदार बुलाए गए और उनकी दवाई से मुझे लाभ हुआ। फिर भी परीक्षा देने में एक प्रकार से असमर्थ रहा। दवाई लेकर परीक्षा देने जाता था। परिणाम यह हुआ कि उस वर्ष परीक्षा में मैं फेल हो गया। मित्रों का साथ छूट गया। अब पुराने साथियों में पंडित रमेशदत्त पांडेय और पंडित काशीराम का साथ हुआ। इसी वर्ष सर एंटोनी मैकडानेल इन प्रांतों के लेफ्टेनेंट गवर्नर होकर आए। उनकी ऐसी इच्छा हुई कि प्रयाग के म्योर सेंट्रल कालेज में विज्ञान की शिक्षा का विशेष प्रबंध हो और क्वींस कालेज में आर्ट विषयों की पढ़ाई विशेष रूप से हो। इस पर मिस्टर आर्थर वेनिस ने, जो फिलासफी के अध्यापक तथा संस्कृत कालेज के प्रिंसपल थे, बी॰ ए॰ क्लास को संस्कृत पढ़ाना प्रारंभ किया। उस समय भवभूति का उत्तररामचरित हम लोगों की पाठ्य-पुस्तक थी। वेनिस साहब ने उसका पढ़ाना प्रारंभ किया। वे अँगरेजी में अनुवाद कराते और प्राकृत शब्दों की व्युत्पत्ति आदि बताते थे। हमारे क्लास में तीन विद्यार्थी ऐसे थे जिनके बिना क्लास का काम नहीं चलता था—एक प॰ काशीराम, दूसरे पं॰ साधोराम दीक्षित और तीसरा मैं। प॰ काशीराम व्याकरण में व्युत्पन्न थे, पं॰ साधोराम साहित्यशास्त्र में और मेरी विशेष रुचि भाषा-विज्ञान की ओर थी। जब इन तीनों विषयों के प्रश्न लिए जाते तब हम लोगों की सम्मति मांगी जाती। यह बात यहाँ तक बढ़ी कि जिस दिन हम तीनों में से कोई उपस्थित न होता उस दिन संस्कृत की पढ़ाई बंद रहती। अस्तु, सन् १८९७ में मैंने बी॰ ए॰ पास किया। सन्
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मेरी आत्मकहानी