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मेरी आत्मकहानी
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के लिये श्रीयुत पडित वासुदेव मिश्र, जो आरंभ में भी कोश-विभाग में शब्द-संग्रह का काम कर चुके थे और जो इधर बहुत दिनो तक कलकत्ते के दैनिक भारतमित्र तथा साप्तहिक श्रीकृष्ण- सदेश के सहायक संपादक रह चुके थे, कोश-विभाग में सहायक संपादक के पद पर नियुक्त कर लिए गए। इनकी नियुक्ति से संपादन-कार्य बहुत ही सुगम हो गया और वह बहुत शीघ्रता से अग्रसर होने लगा। अंत में इस प्रकार सन् १९२७ ई० मे कोश का संपादन आदि समाप्त हुआ।

इतने बड़े शब्द-कोश में बहुत-से शब्दों का अनेक कारणों से छूट जाना बहुत ही स्वाभाविक था। एक तो यो हो सब शब्दों का संग्रह करना बड़ा कठिन काम है, जिस पर एक जीवित भाषा में नए शब्दों का आगम निरंतर होता रहता है। यदि किसी समय समस्त शब्दों का संग्रह किसी उपाय से कर भी लिया जाय और उनके अर्थ आदि भी लिख लिए जायँ, पर जब तक यह संग्रह छपकर प्रकाशित हो सकेगा तब तक और नए शब्द भाषा मे सम्मिलित हो जायँगे। इस विचार से तो किसी जीवित भाषा का शब्द-कोश कभी पूर्ण नहीं माना जा सकता । इन कठिनाइयो के अतिरिक्त यह बात भी ध्यान में रखनी चाहिए कि हिंदी भाषा के इतने बड़े कोश को तैयार करने का इतना बड़ा आयोजन यह पहला ही हुआ है । अतएव इसमे अनेक त्रुटियो का रह जाना कोई आश्चर्य की बात नहीं है। फिर.सी इस कोश की समाप्ति में प्रायः २० वर्ष लगे। इस बीच में समय-समय पर बहुत-से ऐसे नए शब्दो का पता लगता था जो शब्द-सागर में नहीं मिलते थे। इसके अतिरिक्त देश की राजनीतिक प्रगति

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