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मेरी आत्मकहानी
 

छपाई का प्रबध करना आवश्यक था; अब सभा ने कई बड़े-बड़े प्रेसो से कोश की छपाई के नमून मँगा। अत में प्रयाग के सुप्रसिद्ध इंडियन प्रेस को कोश की छपाई का भार दिया गया। इस कार्य का आरभिक प्रबंध करने के लिये उक्त प्रेम का २,०००) पेशगी के दिए गए और लिखा-पढ़ी करके छपाई के सबंध की सब बाते तय कर ली गई

अप्रैल १९१० मे सितबंर १९१० तक तो जंबू में कोश के संपादन का कार्य बहुत उत्तमतापूर्वक और निविध्र होता रहा;पर पीछे इसमे विग्न पडा। पंडित बालकृष्ण भट्ट जंबू में दुर्घटनावश सीढी पर से गिर पड़े और उनकी एक टांग टूट गई, जिसके कारण अक्टूबर १९१० में उन्हें छुट्टी लेकर प्रयाग चला आना पड़ा। नवम्बर मे बाबू अमीरसिंह भी बीमार हो जाने के कारण छुट्टी लेकर काशी चले आए और दो मास तक यहीं बीमार पड़े रहे। संपादन-कार्य करने के लिये जंबू में फिर अकेले पंडित रामचंद्र शुक्ल बच रहे । जब अनेक प्रयत्न करने पर भी जंबू में सहायक संपादको की सख्या पूरी न हो सकी, तब विवश होकर १५ दिसंबर १९१० को कोश का कार्यालय जंबू से काशी मेज दिया गया। कोश-विभाग के काशी आ जाने पर जनवरी १९११ से बाबू अमीरसिंह भी स्वस्थ होकर उसमे सम्मिलित हो गए और बाबू जगन्मोहन वर्मा भी सहायक संपादक के पद पर नियुक्त कर दिए गए। दूसरे मास फरवरी मे बाबू गंगाप्रसाद गुप्त भी कोश के सहायक संपादक बनाए गए। जंबू मे तो पहले सब सहायक सपादक अलग-अलग शब्दों का