सभा मेरे स्थान पर किमी और सज्जन को कोश का सपादक नियुक्त करें। परंतु सभा ने यही निश्चय किया कि कोश का कार्यालय भी मेरे माथ आगे चलकर काश्मीर भेज दिया जाय और वहीं कोश का सपादन हो। उस समय तक स्लिपे अक्षर-क्रम से लग चुकी थी और सपादन का कार्य अच्छी तरह आरभ हो सकता था। अत १५ मार्च १९१० को काशी में कोश का कार्यालय बंद कर दिया गया और निश्चय हुआ कि चारो सहायक संपादक जंबू पहुँचकर १ अप्रैल १९१० से वहीं कोश के सपादन का कार्य आरंभ करें। तदनुमार पंडित रामचंद्र शुक्ल और वावू अमीरसिंह तो यथा-समय जंबू पहुँच गए. पर पडित बालकृष्ण भट्ट तथा लाला भगवान- दीन ने एक-एक मास का समय मांँगा। दुर्भान्यवश बाबू अमीरसिंह के जंबू पहुंचन के चार-पांच दिन बाद ही काशी में उनकी स्त्री का देहांत हो गया जिससे उन्हे थोड़े दिनों के लिये फिर काशी लौट आना पड़ा। उस बीच में अकेले पडित रामचंद्र शुक्ल ही संपादन-कार्य करते रहे। मई के आरंभ में पंडित बालकृष्ण भट्ट और बाबू अमीर-सिंह जंबू पहुँचे और सपादन-कार्य करने लगे। पर लाला भगवानदीन कई बार प्रतिज्ञा करके भी जबू न पहुँच सके अत सहायक संपादक के पद से उनका संबंध टूट गया। शेष तीनो सहायक संपादक उत्तमतापूर्वक संपादन-कार्य करते रहे। कोश के विषय में सम्मति लेने के लिये आरभ मे जो कोश-कमेटी बनी थी, वह १ मई १९१० को अनावश्यक समझकर तोड़ दी गई। कोश का संपादन प्रारंभ हो चुका था और शीघ्र ही उसकी
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मेरी आत्मकहानी
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