इस उपसमिति के कई अधिवेशन हुए जिनमें सब बातो पर पूरा-पूरा विचार किया गया। अंत मे ९ नवबर १९०७ को इस उपसमिति ने अपनी रिपोर्ट दी जिसमे सभा को परामर्श दिया गया कि सभा हिंदी भाषा के दो बडे कोश बनवाये जिनमे से एक मे तो हिंदीशब्दो के अर्थ हिंदी में ही रहे और दूसरे में हिंदीशब्दो के अर्थ अंँगरेजी मे हो। आज-कल हिंदी भाषा मे गद्य तथा पद्य मे जितने शब्द प्रचलित हैं, उन सबका इन कोशो मे समावेश हो, उनकी व्युत्पत्ति दी जाय और उनके भिन्न-भिन्न अर्थ यथासाध्य उदाहरणो-सहित दिए जायें। उपसमिति ने हिंदी भाषा के गद्य तथा पद्य के प्राय दो सौ अच्छे-अच्छे ग्रंथो की एक सूची भी तैयार कर दी थी और कहा था कि इनमें से सब शब्दो का अर्थ सहित संग्रह कर लिया जाय; कोश की तैयारी का प्रबंध करने के लिये एक स्थायी समिति बना दी जाय और कोश के संपादन तथा उसकी छपाई आदि का सब प्रबंध करने के लिये एक सपादक नियुक्त कर दिया जाय। समिति ने यह भी निश्चित किया कि कोश के सबंध मे आवश्यक प्रबंध करने के लिये महामहोपाध्याय पंडित सुधाकर द्विवेदी, लाला छोटेलाल, रेवरेंट ई० ग्रीव्स, बाबू इंद्रनारायणसिंह एम० ए०, बाबू गोविन्दास, पंडित माधवप्रसाद पाठक और पंडित रामनारायण मिश्र वी० ए० की प्रवध-कर्त समिति बना दी जाय और उसके मत्रित्व का भार मुझे दिया जाय। समिति का प्रस्ताव था कि उस प्रबंध-कर्तृ समिति को अधिकार दिया जाय कि वह आवश्यकतानुसार अन्य सज्जनों को भी अपने में सम्मिलित कर ले। इस कोश के
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मेरी आत्मकहानी
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