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मेरी आत्मकहानी
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पादरी जे० डी० बेट ने पहले सन् १८४९ मे काशी से एक हिंदी-कोश प्रकाशित किया था,जिसमे हिंदी के शब्दो के अर्थ अंँगरेजी में दिए गए थे। इसी समय के लगभग काशी से कलकत्ता स्कूल बुक सोसायटी का हिंदी कोश प्रकाशित हुआ था जिसमे हिंदी के शब्दों के अर्थ हिंदी में ही थे। बेट के कोश के पीछे से दो और संशोधित तथा परिवद्धित संस्करण प्रकाशित हुए थे। सन् १८७५ में पेरिस में एक कोश का कुछ अंश प्रकाशित हुआ था, जिसमे हिंदी या हिंदुस्तानी शब्दों के अर्थ फ्रांसीसी भाषा में दिए गए थे। सन् १८८० में लखनऊ से सैयद जामिनाली जलाल का गुलशने फैज नामक एक कोश प्रकाशित हुआ था,जो था तो फारसी-लिपि मे हो; परंतु शब्द उसमे अधिकांश हिंदी के थे। सन् १८८७ मे तीन महत्त्व के कोश प्रकाशित हुए थे, जिनमे सबसे अधिक महत्व का कोश मिरजा शाहजादा कैसर-बख्त का बनाया हुआ था। इसका नाम "कैसर-कोश" था और यह इलाहाबाद से प्रकाशित हुआ था। दूसरा कोश श्रीयुत मधुसूदन पंडित का बनाया हुआ था जिसका नाम "मधुसूदननिबंटु" था और जो लाहौर से प्रकाशित हुआ था। तीसरा कोश श्रीयुत मुन्नीलाल का था जो दानापुर मे छपा था और जिसमें अंँगरेजी शब्दों के अर्थ हिंदी में दिए गए थे। सन् १८८१ और १८९५ के बीच मे पादरी टी० क्रेंपन के बनाए हुए कई कोश प्रकाशित हुए थे जो प्रायः स्कूलो के विद्यार्थियों के काम के थे। १८९२ में वॉकीपुर से श्रीयुत बावा बैजूवास का "विवेककोश" निकला था। इसके उपरांत गौरीनागरी-कोश, हिंदीकोश, मंगल-