पृष्ठ:मेरी आत्मकहानी.djvu/१३१

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१२६ मेरी पालकहानी मे लग जाने पर उसकी आर्थिक महायता की। इससे बढ़कर उनकी अकृतलता और स्वार्थपरता का क्या प्रमाण हो सकता है । मुझे मोष है कि प्रत्यक्ष रीति से नहीं, पर परोन रीति से मैं इस विद्यादान के शुभ काम में सहायक हुआ। महाराज बर्दवान से समय-समय पर उद्योग करके मैने नागरी-प्रचारिणी सभा के लिये २,०००) की सहा- यता प्राप्त की। (५) इधर सभा का काम बढ़ जाने से उसके लिये अपने निज के मवन की चिंता उसके कार्यवाओं को बहुत हुई। बहुत धान-यीन के अनंतर मैदागिन के कंपनीवाग का पूर्वी कोना हम लोगों ने चुना। यहाँ उस समय पानी क्या मैले के नल धनते समय जो मिट्टी निकली थी उसका ढेर लगा हुआ था। वायू गोविंददास क्या मिस्टर प्रीज के उद्योग क्या काशी के फ्लेक्टर ई० एच० रडीचे माहब की कृपा से यह जमीन ३,५०० रु. में समा को मिली और नववर सन् १९०२ में इसके चयनामे की रजिस्टग हुई। भवन बनवाने के लिये धन इकट्ठा करने का उद्याग आरम हुआ। धन के लिये पहला डेपुटेशन वायू राधाकृष्णशस, पं० माधवराव सप्रे, पं० रामराव चिंचोलकर, वायू माधोप्रसाद व्या पं० विश्वनाथ शर्मा का बाहर गया। वाबू राधाकृष्णदास चो अयोध्या होकर काशी लौट आए और शेष लोगों ने अनेक स्थानों की यात्रा करके भवन के लिये अच्छा चंदा इकट्ठा किया। मैंने भी इस काम के लिये कई घेर मिर्जापुर की यात्रा को क्या फल- कता, लाहौर और वंधई वर्क एक-दो मित्रों के साथ धावालगाया और वन वटोरा।