पृष्ठ:मेरी आत्मकहानी.djvu/११९

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
११४
मेरी आत्मकहानी
 


(१३) मृत्यु—

संवत् सोरह सै असी, असी गंग के तीर।
श्रावण श्यामा तीज शनि, तुलसी तज्यो शरीर॥

इन सब तिथियों की गणना ज्योतिष के अनुसार की गई और सब ठीक उतरीं। पंडित रामचंद्र शुक्ल इस ग्रंथ एक भारी जाल मानते हैं और उनका अनुमान है कि यह जाल अयोध्या मे रचा गया। पर अपने इस अनुमान के लिये वे कोई प्रमाण नहीं देते। इस चरित्र की रचना संवत् १६८७ में हुई और इसकी सबसे प्राचीन प्रति संवत् १८४८ को लिखी मौजा मरुव, पोस्ट आवरा जिला गया के पंडित रामाधारी पांडेय के पास है। उनसे इसकी नकल महात्मा बालकराम विनायक जी को प्राप्त हुई। उन्होंने इसकी प्रति उन्नाव के पंडित रामकिशोर शुक्ल को दी,जिन्होंने इसे पहले-पहल प्रकाशित किया।

इस ग्रंथ के अनुसार सरवार के रहनेवाले पराशर गोत्र के प्रतिष्ठित ब्राह्मणों के कुल मे,जो कुछ काल के अनंतर राजापुर मे बस गया था,तुलसीदास का जन्म संवत् १५५४ को श्रावणशुक्ला सप्तमी को हुआ। लड़का उत्पन्न होते ही रोया नहीं,उसके मुख से "राम" निकला और जन्म के समय उसके बत्तीसों दाँत थे। यह देखकर लोगों को आश्चर्य हुआ। तुलसीदास के पिता को बड़ा परिताप हुआ। बंधु-बांधवो से सलाह करके यह निश्चय किया गया कि यदि बालक तीन दिन तक जीता रहे तो सोचा जायगा कि क्या करना चाहिए। एकादशी को तुलसी की माता हुलसी की अवस्था बिगड़