छान-बीन करने पर यह सिद्धांत स्थिर होता है कि अनुमानत: तुलसीदास के साथ में कोई लेखक रहता था जो उनकी पुस्तको की नकल करता था। स्वयं तुलसीदास जी के हाथ का लिखा उनका कोई ग्रंथ नहीं मिला है। उनके अक्षरों की प्रामाणिक नकल दो जगह है। एक तो उस पंचनामे मे जो उन्होंने अपने मित्र टोडर के पुत्र और पौत्रों के बीच बँटवारे में लिखा था और जो महाराजकाशिराज के यहाँ रक्षित कहा जाता है। इसकी फोटो-प्रतिलिपि पहले पहल डाक्टर ग्रियर्सन ने अपने Modern Vernacular Literature of Hindustan मे छापी थी। दूसरी गोसाईं जी के हाथ की लिखी वाल्मीकीय रामायण की प्रति है। इसका एक कांड बनारस के संस्कृतकालेज के सरस्वतीभवन मे रक्षित है। ये दोनो लेख अत्यंत प्रामाणिक हैं, इनके विषय में संदेह का स्थान नहीं है। दोनों कागजों की प्रतिलिपि मैंने "गोस्वामी तुलसीदास" नामक ग्रंथ मे दी है जिसे मैने डाक्टर पीतांबरदत्त बड़थ्वाल के सहयोग में प्रयाग की हिंदुस्तानी एकाडमी के लिये लिखा है। इसके साथ ही राजापुर और अयोध्या की प्रतियों के फोटो भी दिए है। पंचनामे और वाल्मीकीय रामायण के अक्षर एक दूसरे से मिलते हुए हैं, पर वे रामायण की इन दोनो प्रतियों से नहीं मिलते। पंचनामे और वाल्मीकीय रामायण के अक्षर कुछ गोल हैं और अयोध्या तथा राजापुर की प्रतियों के अक्षर लंबोतरे हैं। इसी से यह अनुमान किया जाता है कि ये दोनो प्रतियाँ किसी लेखक की लिखी हुई हैं जो गोसाईं जी के साथ रहता था।
पृष्ठ:मेरी आत्मकहानी.djvu/११४
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
मेरी आत्मकहानी
१०९