पृष्ठ:मेघदूत का हिन्दी-गद्य में भावार्थ-बोधक अनुवाद.djvu/९

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मेघदूत।


अपनी प्रेयसी से सैकड़ों कोस दूर फेंक दिया जाय तो उसकी विरह-व्याकुलता की मात्रा बहुत ही बढ़ जायगी। इसमें कुछ भी सन्देह नहीं। ऐसे प्रेमी का वियोगताप वर्षा में और भी अधिक भीषणता धारण करता है। उस समय वह उसे प्रायः पागल बना देता है। उसके प्रेम की परीक्षा उसी समय होती है। उसी समय इस बात का निश्चय किया जा सकता है कि इस प्रेमी का प्रेम कैसा है और यह अपनी प्रेयसी को कितना चाहता है। कालिदास ने इस काव्य में आदर्श-प्रेम का चित्र खींचा है। उस चित्र को सविशेष हृदयहारी और यथार्थता-व्यजक करने के लिए यक्ष को नायक बनाकर कालिदास ने अपने कवि-कौशल की पराकाष्ठा कर दी है। अतएव, आप यह न समझिए कि कवि न योहीं, बिना किसी कारण के, विप्रयोग-श्रृङ्गार का वर्णन करने के लिए, यक्ष का आश्रय लिया है।

विषय-वासनाओं की तृप्ति के लिए ही जिस प्रेम की उत्पत्ति होती है वह नीच प्रेम है। वह निन्द्य और दूषित समझा जाता है। निर्व्याज प्रेम ही उच्च प्रेम है। निर्व्याज प्रेम अवान्तर बातों की कुछ भी परवा नहीं करता। प्रेम-पथ से प्रयाण करते समय आई हुई बाधाओं को वह कुछ नहीं समझता। विघ्नों को देख कर वह केवल मुसकरा देता है। क्योंकि इन सबका उसके सामने हार माननी पड़ती है। मेघदूत का यक्ष निर्व्याज प्रेमी है। उसका हृदय बड़ा ही उदार है। उसमें प्रेम की मात्रा इतनी अधिक है कि ईर्ष्या, द्वेष, क्रोध, हिंसा आदि विकारों के लिए जगह ही नहीं। यक्ष को उसके स्वामी कुवेर ने देश से निकाल दिया। परन्तु उसने, इस कारण, अपने स्वामी पर ज़रा भी क्रोध प्रकट नहीं किया।उसको