कर लिया। अलका छोड़ कर वह रामगिरि नामक पर्वत पर गया वही उसने एक वर्ष बिताने का निश्चय किया। आषाढ़ का महीना आने पर बादल आकाश में छा गये। उन्हें देख कर यक्ष का पत्नी-वियोग-दुःख दूना हो गया। वह अपने को भूल सा गया। इसी दशा में उस विरही यक्ष ने मेघ को दूत कल्पना करके, अपनी कुशलवार्ता अपनी पत्नी के पास पहुँचानी चाही। पहले कुछ थोड़ी सी भूमिका बांध कर उसने मेघ से अलका जाने का मार्ग बताया; फिर सँदेशा कहा। कालिदास में मेघदूत में इन्हीं बातों का वर्णन किया है।
मेघदूत की कविता सर्वोत्तम कविता का बहुतही अच्छा नमूना है। उसे वही अच्छी तरह समझ सकता है और उससे पूरा पूरा आनन्द भी वही उठा सकता है जो स्वयं कवि है। कविता करने ही से कवि-पदवी नहीं मिलती। कवि के हृदय को—कवि के काव्यमर्म्म को—जो जान सकते हैं वे भी एक प्रकार के कवि हैं। किसी कवि के काव्य के आकलन करनेवाले का हृदय यदि कहीं कवि के ही हृदय-सदृश हुआ तो फिर क्या कहना है। इस दशा में आकलनकर्त्ता को वही आनन्द मिलेगा जो कवि का उस कविता के निर्म्माण करने से मिला होगा। जिस कविता से जितना ही अधिक आनन्द मिले उसे उतनी ही अधिक ऊँचे दरजे की समझना चाहिए। इसी तरह, जिस कवि या समालोचक को किसी काव्य के पाठ या रसास्वादन से जितना ही अधिक आनन्द मिले उसे उतना ही अधिक उस कविता का मर्म्म जानने वाला समझना चाहिए।
इस कविता का विषय—यहाँ तक कि इसका नाम भी