ध में प्रान्तभाग में चमकती हुई विजनों से युक्त तुझं दम्यता है तब
रा वह शैल मेरे नत्रों के सामने आ सा जाता है। बात यह है कि
मुझ मैं उसकी समता पाता हूँ। तुझे देवते हा मुझका उमका नीलम ।
नड़ा हुआ शिम्बर याद आ जाता है और तेरे प्रान्तभाग में बिजली
चमकती देख उसकी वह कनक-कदल्ली की वाड़ याद आ जाती है!
नरी गृहिणी उम जन्त का बड़ा प्यार करती है । इस कारण उसका
भरण होते ही मेरा कन्तेजा काप कटता है और मैं विहल हो
उस क्रीड़ा-शैल पर चमेली का एक मण्डप है. जिमके चारो ओर कुरुबक (कुरे ) की बाड़ है । उसी मण्नुप के पाम दा वृक्ष हैं- क तो लाल अशाक का, जिसके हिलन हुए पतं बहुत ही सुहावन मालूम होते हैं। दूनग बकुल (मालसिग का. जिसकी मनाहरता मैं वर्णन नहीं कर सकता: उनमें से पहला ना तेरी सखी मेरी पत्नी ) के बॉयें पैर का स्पर्श चाहता है; क्योंकि बिना उमके ह फुलता ही नहीं; और दूसरा दोहद के बहाने उसकी मुख-मदिरा की प्राप्ति की आकाक्षा रखता है. क्योंकि वह भी बिना उसके कुल नहीं देना ! मित्र दब, मेरे क्रीड़ा-शैल के इन वृत्तों की वृत्ति भी मेरी ही सी है। जैसे मैं अपनी गृहिणी के पैर छूने और मदिरापान के बहाने उसके मुख का रस लेने की इच्छा रखता हूँ से ही ये भी रखते हैं।
उन्हीं दोनों वृक्षों के बीच में सोने का एक ऊचा खम्भा है। उसकी जड़ में हर वाँस की कमनीय कान्तिवान्नं सुन्दर सुन्दर रत्न
जड़़े हैं । खम्भे के ऊपर स्फटिक की एक पटिया है। उसी पर तेरा