दृमरी तरफ़ तुझ क्रौञ्चरन्ध्र नामक घाटी मिलेगी। यह घाटी हंसो
के लिए दरवाजे का काम देती है। इसी से होकर हंस आते जाते
हैं। यह बड़ी प्रसिद्ध घाटी है। परशुरामजी के प्रवन्त-पराक्रम-
सम्वन्धी यश की यह सूचक है ! शिवजी से अस्त्र-विद्या सीख कर
जब परशुरामी कैलास से नीचे उतरं तव अपने बाणां से हिमालय
को काट कर उन्होंने यह घाटी बना दी और इसी की राह से
हिमालय पार करके वे सुखपूर्वक निकल आये । तू भी अपने शरीर
को लम्वा और तिरछा करकं इम घाटी से निकल जाना। निकलते
समय, बलि को छलनेवाले विष्णु के बढ़े हुए श्यामचरण के सदृश
नेरी शोभा होगी। उस समय ऐसा मालूम होगा जैसे वामनजी
का बढ़ा हुआ श्यामल पाँव वाटी से निकल रहा है।
क्रौञ्चरन्ध्र से निकल कर उत्तर दिशा में ऊपर की ओर जाना।
आगे ही तुझे कैलास-पर्बत मिलेगा। वह शुभ्र स्फटिक का है।
इस कारण सुर-सुन्दरियाँ उससे दर्पण का काम लेती हैं; उसमें उनके
प्रतिबिम्ब दिखाई देते हैं । यह वही कैलास है जिसे लङ्कुश रावण
ने अपनी बीसों भुजाओं का बल लगा कर जड़ से हिला दिया था।
कुमुद के महश उसके सफेद शिखर आममान के भीतर दूर तक चले
गये हैं। उन्हें देख कर ऐसा मालूम होता है जैसे त्रिपुरान्तक त्रिला-
चन का अट्टहास इकट्ठा होकर मभी दिशाओं में चमक रहा है। वह
पर्वत तो तत्काल काटे गये हाथी-दाँत के समान उजला है और तू
चिकन काजल के ममान काला । अतएव, जब तू उसके किनारे किसी
शिरवर पर बैठ जायगा तब अपूर्व ही शोभा होगी । तब तू गोरे गोरे
क्लराम जी के कन्धे पर पहुं हुए नीलाम्बर की उपमा को पहुँच जायगा