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मेघदूत ।


कुरुश्रेत्र से कनखल के लिए प्रस्थान करना । वहीं शैलराज हिमालय से जद्दतनया गड़ा उतरी है। राजा मगर को सन्तति के लिए, स्वर्ग पर चढ़ने में, उमनं मोदी का काम दिया है। उसी की कृपा से सगर के साठ हजार सुत म्बर्ग पहुँचे हैं। इस गङ्गा को शिवजी ने अपने जटा-जूटों में ठहरा रक्या है : यह वात पार्वतीजी को पसन्द नहीं , वे गङ्गाजी को अपनी सौत ममझती हैं। इसी से उन्होंने एक बार भीहें टेट्टी करके गङ्गाजा पर कुटिल कटाक्ष किया था। इस पर गङ्गाजी ने उनकी स्वब खबर ली थी। उन्हेंने वहुत मा फेन बहा कर उसके बहानं पार्वतीजी की हसी सी की थी। यही नहीं उन्होंने अपने तरहरूपी हाथों से शिवजी के भाल-चन्द्रमा का पकड़ कर उनकी जटाओं को झकझोर भी डाला था। इस घटना द्वारा उन्होंने मानां शिवजी में यह कहा था कि इसे मना नहीं करते ! देखिए, यह मेरे माथ कैसी कुटिला कर रही हैं।

आकाश में अपने शरीर के अगले भाग को कब लम्बा करके जब सू गङ्गाजी का जल पीने के लिए मुर-गज के ममान मुक्केगा तब सुरसरि के स्फटिक-तुल्य स्वच्छ और शुभ्र जन्न पर तेरी काली काली छाया पड़ेगी। उस समय बड़ा ही अनुपम दृश्य दिग्बाई देगा। मालूम होगा कि प्रयाग छोड़ कर कनाल ही में गङ्गा- यमुना का मङ्गम हा गया !

वहाँ से तुझे गङ्गाजी के पिता हिमालय पर जाना पड़ेगा। उस पर कमनुरी-भृग बहुत हैं । उत्तकी नाभियों से कस्तुरी गिर करती है । इस कारण जिन गिन्नामों पर चे बैठने हैं वे भी