पृष्ठ:मेघदूत का हिन्दी-गद्य में भावार्थ-बोधक अनुवाद.djvu/२७

यह पृष्ठ प्रमाणित है।
१३
मेघदूत।


है। अतएव गावों के चारों तरफ उन्हें तू अपने अपने घोसलों में कलोल करते पावेगा। आहा! आज कल तो परिपक फलों से लदे हुए जामुन के वृक्षों से वहाँ के वनों के बाहरी भाग श्यामही श्याम दिखाई देते होंगे। दशार्ण देश की राजधानी का नाम विदिशा (मिलसा) है। वह बहुत नामी नगरी है। देश-देशान्तरों तक में वह प्रसिद्ध है। वेत्रवती नदी उसके पास ही बहती है। उसके नीर पर तू ज़रा देर ठहर जाना और यदि शब्द ही करना हो तो धीर धीरे करना। वेत्रवती का जल बहुत ही स्वादिष्ट है। वह लहरियों से सदा ही लहराया करता है। ऐसे चञ्चल तरङ्गवाल जल को भ्रमङ्ग-युक्त मुख के सदृश पीकर तू कृतकृन्य क्या हो जायगा, तुझे तत्कालही रसिकता का बहुत बड़ा फल मिल जायगा।

विदिशा के पाम ही नीचगिरि नाम का पर्वत है। वहा भी थोड़ी देर ठहर कर विश्राम कर लेना। उस पर कदम्ब के बड़े बड़े फूल खिले देख तुझे ऐमा मालूम होगा जैसे तुझसे मिलाप होने के कारण वह पर्वत पुलकित हो रहा है---कदम्ब-कुसुमों के बहाने वह अपने शरीर को कण्टकित कर रहा है। नीचगिरि पर सुन्दर सुन्दर शिला-गृह हैं। उनसे अडग्नाओं के अडगराग और इत्र आदि को सुगन्धि आया करती है। यदि तेरी भी घ्राणेन्द्रिय को इस सुगन्धि का अनुभव प्राप्त हो ना समझ लेना कि विदिशा के रसिक युवक वहा विहार करने आते हैं।

नीचगिरि पर कुछ देर विश्राम करके आगे बढ़ना। मार्ग में तुझे पहाड़ी नदियों के किनारे किनारे बहुत से फूलबाग मिलेंगे। उनमें चमेली फूल रही होगी उसे अपनी नई बँदों से तू अवश्य