प्रधान सहायक तू ही है---खेती तेरे ही अधीन है। तू न हो तो खेतों में एक दाना भी पैदा न हो। अतएव, वे तुझे प्रीति पूर्ण नयनों से देखेगी और कहेंगी---'भले आये। बड़ी कृपा की उनके इन स्वागत-सूचक वचनों का अभिनन्दन करके तू जरा पीछे को मुड़ पड़ना और फिर झट पट उत्तर की ओर चल देना।
वहां से कुछ ही दूर तुझे आम्रकूट नामक शिखरधारा पर्वत मिलेगा। पानी बरसा बरसा कर तूने इसके आतप-तप्त वनो का सन्ताप न मालूम कितनी दफ़े दूर किया है। इस प्रकार तूने पहलेही से उस पर बहुत कुछ उपकार कर रखा है। अतएव राह का थका-मांदा जब तू उसके उपर पहुँचेगा तब वह बड़े आदर से तुझे अपने सिर पर बिठा कर तेरी थकावट दूर कर देगा। अपने ऊपर उपकार करनेत्राला मित्र यदि दैवयोग से अपने घर आ जाय तो नीचात्मा भी भक्तिभाव-पूर्वक उसका आदर करते हैं उससे--विमुख नहीं होते---उच्चात्माओं का तो कहना ही क्या है। इन कारण आम्रकूट जैसे उच्च शिखरवाले पर्वत के द्वारा तेरा सम्मान होना ही चाहिए। इस पर्वत के विषय में मुझे कुछ और भी कहना है। इसका
आम्रकूट नाम सर्वथा सार्थक है। बात यह है कि इस पर आम के पेड़ों की बहुत अधिकता है। उनसे यह व्याप्त हो रहा है। इसी से
यह आम्रकृट कहाता है। आज-कल आम पक रहे होंगे और पके
हुए आमों से इसका प्रान्त-भाग पीला पड़ गया होगा। इस कारण, चमेली का तेल लगी हुई चिकनी वेणी के सदृश काला काला तू जब इसके पीतवर्ण शिखर पर बैठ जायगा तब ऐसा मालूम होगा मानो पृथ्वी के तप्त-काञ्चन-सदृश पयोधर के बीच में श्यामता