रामचन्द्र ने बहुत समय तक काम किया था। इन कारण इसकी पीठ पर उनके वन्दनीय चरणों के चिह्न अब तक बने हुए हैं। इसके सिवा यह तेरा मित्र भी है। हर साल, वर्ग के अरम्भ में, तेरे बरसाये हर जल का संयोग होते ही. चिर-वियोग से उत्पन्न हुए उष्ण-वाष्परूपी आंसू गिरा कर यह अपना स्नेह प्रकट करता है। अतएव, ऐसे पवित्र और सच्चे स्नेहो से मिल भेंट करही तुझे प्रत्थान करना चाहिए। ऐसा न करने से सदाचार की हानि होगी।
अच्छा तो अब मैं तुझे रास्ता बता दूँ। मेरा सब जाना बूझा है, और तू कभी पहले अलका गया नहीं। मेरे बताये रास्ते से यदि तू जायगा तो तुझे कुछ भी कष्ट न होगा। अतएव, पहले तो मैं तुझे अलकापुरी जाने का रास्ता बताऊँगा, फिर अपना सन्देह सुनाऊँगा: सन्देश की बात सुन कर घबराना मत। यह सन्देह न करना कि मेरा सन्देश शुष्क होगा। नहीं, वह तेरे ही सदृश सरस होगा। उसे तेरे कान पी सा लेंगे। उन्हें वह बहुत ही पसन्द होगा।
हाँ, मैं तुझसे यह कह देना चाहता हूँ कि बिना ठहरे बराबर लगातार चले ही न जाना। जहाँ थकावट मालूम हो वही किसी ऊँचे पहाड़ पर पैर रख कर ठहर जाना और कुछ देर उसके ऊपर विश्राम करके तब आगे बढ़ना। चलने से भूख-प्यास बहुत लगती है और तुझे जाना है दूर। अतएव यदि तुझे क्षीणता मालूम हो---यदि तुझे भूख-प्यास लगे---तो पहाड़ी सोतों का निर्मल जल पीकर अपनी क्षीणता दूर कर लेना। उस नल के पान से तेरी तबीयत फिर हरी भरी हा