पृष्ठ:मेघदूत का हिन्दी-गद्य में भावार्थ-बोधक अनुवाद.djvu/१५

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मेघदूत।
पूर्वार्द्ध।

कुबेर की राजधानी अलकापुरी में एक यक्ष रहता था। वह अपने स्वामी कुवेर के यहाँ किसी पद पर अधिष्ठित था। अपनी प्रियतमा पत्नी पर उसका प्रेम असीम था। उसका मन सदा यक्षिणीही में लगा रहता था। इस कारण, जिस काम पर वह नियत था वह उससे अच्छी तरह न होता था। उससे बहुधा भूलें हो जाया करती थीं। अतएव कुवेर को उसे डॉटना पड़ता था। इन डॉट-डपट का जब उस पर कुछ भी असर न हुआ तब कुवेर ने क्रोध में आकर उसे अपने यहाँ से निकाल दिया। उसने आज्ञा दी—

"जा, तू यहाँ से निकल जा। पूरा एक वर्ष तू कहीं बाहर जाकर रह। जिसके प्रेम-पाश में फँसे रहने के कारण तुझसे अपना काम नहीं होता उसके दर्शन भी तुझे अब एक वर्ष तक न होंगे। तेरे लिए यही दण्ड उचित है"।

यक्ष को विवश होकर कुवेर की इस आज्ञा का पालन करना पड़ा। उसकी सारी प्रतिष्ठा धूल में मिल गई। अलका छोड़ कर वह रामगिरि-पर्वत पर रहने चला गया। यह वही पर्वत है जहाँ वनवास